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________________ ६३४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. वरी, केवल सखीय सहाय करी चिरनंदीयै ( ० ) एवीशचरण शरण शरणा । चिरसंचित पुरित तिमिर हरणा । नित चित एपद समरण धर णा | चि० ॥ १ ॥ एपद समरण जिण चितधरीया । तरीया तरसे तरै नवद रीया । सदनंत जविक सहु जयहरीया ॥ चि० ॥ २ ॥ एपद गुणसागर म नुहारा । वरणन तरणीयै बहुहारा । इंद्रादिक सुरन लह्यो पारा ॥ चि० ॥ ३ ॥ एपद अतिशय महिमाधारा । आश्रितपद कमला जरतारा । जिनचंद्रा नंद घनपद कारा ॥ चित० ॥ ४ ॥ जिनहरष सुरिंदके शिवकरणा । चंद्रामल गुण विंशति करणा । हुइज्यो प्रनुरजए अवधारणा ॥ चि० ॥ ५ ॥ * ॥ इति श्री समस्त विंशति पदस्तुति ॥ २१ ॥ # ॥ ॥ * ॥ अथ कलश ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ एवीशथानक जुवननंदन अघ निकंदन जानीये । विबुधेंद्र चंद्र नरेंद्र वंदित पद जिनेंद्र बखानीयै । ए वीशपद जव जलधि तारन तर गुन पहिचानीयै । इमजानि जविजन कुशलकारन वीश पद नर आनीयै ॥ १ ॥ इहवरस चंद्र दिनेंद्र हरिमुख विधि नयन बिति मिति धरू । तिह मासाद्रव धवल दल तिथि पंचमी रविवासरू । बंगाल ज नपद जिह विराजित शिखर तीरथ गिरीवरू । सहु नगर सोनित अजीम गंजपुर फुतीय वाजूचरपुरु ॥ २ ॥ खरतर गणेसर विजित सुरगुरु बिमल गुण गिरिमाधरा। गुणनवन जविजन नलिन कानन नित विकासन दिन करा मुनिचंद्र श्री जिनला सूरिंद सुगुरु महीयल युगवरा । सकलेंद्र वंद्य जिनें द्र शासन मंगना नित हितधरा ॥ ३ ॥ तसुपर नऊल शिखरि गणवर उदय गिरि वासरकरा । योगींद्र वृंद नरेंद्र वंदित चरण पंकज गणधरा । आचार पंच बत्तीस गुणधर सकल आगम सागरा | युगप्रवर श्री जिनचंद्रसूरी गु रु सकल सूरीसरा ॥४॥ तसुचरण कमलज युगलसेवन हनिशिमधुकरता धरी । वलि सुगुरुपद अरविंद युगनी कृपा नित चित आदरी | गणधार श्री जिनहरषसूरी हरष घरी घन अघहरी । या वीशपदकी विविधि पूजन वि तिणी रचनाकरी ॥ ५ ॥ इति श्री विंशति स्थानक स्तुतिमयःपूजा विधि ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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