________________
परनसागर पूर्ण पाठ कही)बे वांदणा देव । अवग्रह मांहिज कलो थको । इलाका सं० प्र० । अनुनिमि अप्निंतर । देव सियं खामेनं ( गुरु कहै खामेह) प, इखं खामेमि देवसियं (कही) गोमालीय बैसी । वाम हाथे मुह पत्ती मुखें धरी । दक्षिण हाथ गुरु सनमुख करी । मस्तक नमावी ( सर्व पाठ कहे ) पने विधिमुंबे बांदणादे । आयरिय नवशाए (इत्यादि ३ गाथा कही) करोमिनंते सामाश्यं ॥ इनामि गर्न कानसग्गं (इत्यादि कही) चारित्र शुधिनिमित्तै दोयलोगस्सनो कासग्ग करे (पारी ) दर्शन शुद्धि निमित्तें प्रगट लोगस्स कही । सबलोए अरिहंतचे। वंदण । अन्नत्थू० कही ॥१ लोगस्सनों कानसग्ग करै ( पारी ) ज्ञान शुधि निमित्तें । पुक्खरवर दीवढे ( कही) सुयस्स नगवन । वंदण व० । अन्नत्थू कही। १ लोगस्सनों कानसग्ग करै ( पारी ) सिघाणं ( कही ) वेयावच्च गराणं न कहै । पढ़। सुयदेवयाए करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू कही । एक नवकारनों कानसग्ग करी । गुरु संयोग नही हुवै ( तो ) एक श्रावक कान्सग्ग पारी । नमोत्सिघा कही । श्रुतदेवतानी स्तुति कहै। (गुरु हुवै तो गुरु कहै) बीजासर्व स्तुति सुणकै कानसग्ग पारें। पढ़। खित्त देवयाए करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू कही। एक नवकार चिंतवी । पूर्वली परें (क्षेत्र देवतानी स्तुति कहै ) प कनो थको। १ नवकार कही। संमाशा प्रमार्जी। ककडू बैसी । मुहपत्ती पमिलेही । विधमुंबे वांदणा देई । इलामो अणुसहिं कही । बैसे ( प3 गुरु एक स्तुति कयां पूर्व : श्रावक समस्त मस्तकें अंजली करी। णमो खमासणाणं । णमो सिधा कही। णमोस्तु वर्ष मानाय ) इत्यादि तीन स्तुति कहै ( श्राविका । णमो खमासमणाणं । कही । संसार दावानी तीन स्तुतिकहै । प णमों त्थुणं कही । एक श्रावक खमासमण देई कहै । इछाका सं० म० । स्तवन नएं। बीजा सर्व खमासमण देई कहै । इला० सं० ० । स्तवन सानलं (गुरु कहै जणह, सांजलह) पठे आसणे बैसी । नमो सिधा पूर्वक । वमो स्तवन कहै । परे तीन खमासमणे । आचार्य उपाध्याय सर्व साधू बांदी। चोथे खमासमणे इडा० सं० ज । देवसी प्रायवित्त