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- देवसी प्रतिक्रमण विधि. दिस्सावेह ) फेर खमासमण देई । इडा० सं० न० । वैसणो गर्ने । (गुरु० गएह) प छ कही। जो शीतकालादि हुवे (तो) खमास मण देई । इहा. सं० ज० । पांगरणो संदिस्सा (गुरु० संदिस्सावेह) फेर खमासमण देई । श्वा० सं० प्र० । पांगरणो पमिग्घा ( गुरु० यमिग्घाएह ) श्वंकही शुलध्यान करै ॥१॥ इति संध्यासामायिक विधिः ॥
* ॥ अथ देवसी पक्किमण विधि लि० ॥ * ॥
॥ ३ खमासमण देई ॥ इहा० सं० प्र० । चैत्य वंदन करूं (गुरु कहै करेह ) पढ़ इलु कही । जयतिहुयण । जय महायस (प्र मुख) नमस्कार कही । नमोत्थुणं कही । अरिहंत चेश्याएं० (इत्यादि पूर्वोक्त रीतें)च्यारे थुई ए देव वांदै । च्यार खमासमणे प्राचार्यादिक बांदी । प3 इकार समस्त श्रावको वाहुं । इम कही गोमालिय बैसी। मस्तक नमावी । सवस्सवि देव सिय (इत्यादि) तस्स मिठामि मुक्कडं क है (पिण) इहा कारेण संदिस्सह श्वं ( एपद न कहै ) पछै ऊना थई। कमि ते सामाश्य० । इछामि ठगन कान सग्गं । जोमे देवसिन० ॥ तस्सुत्तरी० ॥ अन्नत्थू ससिएणं० ॥) इत्यादि कही ( कानसग्ग करै । काठसग्ग माहें । आजूणा चौपहरा दिवसमें) (इत्यादि पाठ मनमें चिं तवी) णमो अरिहंताणं कही । कानसग्ग पारी । लोगस्स कहै । संमा शा प्रमार्जन पूर्वक बैसी। मुहपत्ती पमिलेही। बे बांदणा देवै । पछै अवग्रह मांहि ऊनो थको कहै । इडा० सं० ० ॥ देवसियं आलोकं । गुरु कहै आ लोएह । पठे। इळ आलोएमि० पाठ कहै । आजूणा चौपहर दिवस । लघु अतीचार आलोवै । पछै सबस्सवि देवसिय (इत्यादि) इहा कारेण संदिस है। सूधी कहै । तिवारै (गुरु कहै पमिक्कमह ) पछै । इई तस्स मिला मि मुक्कम (कही) संमाशा प्रमार्जी । प्रमार्जित नूमें आसणे बैसी कहै । जगवन सूत्र नएं (गुरु कहै नणह ) पड़े इडं कही । तीन नवकार ३ करोमि नंते (अथवा) १ नवकार १ करेमि नंते ( कही ) इहामि पनि कमिनं । जोमेदेवसी ( इत्यादि कही) एक श्रावक बंदित्तू कहै । बी जा सर्व भुणे । प कलो थई । अनुहिनमि आराहणाए ( इत्यादि सं