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अठ पुहरी पोसह ग्रहणबिधि
१११ बिशुधि निमित्तं कानसग्ग करूं (गुरु कहै करेह ) पड़े इवं कही। देवसी प्रायद्वित्त विसुधि निमत्तें । अन्नत्थू कही । च्यार लोगस्सनो कानसग्ग कर ( पारी ) लोगस्स कहै । पर खमासमण देई । इला का० सं० ज। खुद्दो वदव नहमावणत्थं करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू० ) इत्यादि कही) च्यार लोगस्सनो कानसग्ग करै ( पारी ) लोगस्स कहै ॥ वैसी। खमासमण देई । थंनणा पार्श्वनाथ जीनों चैत्य वंदन करै । जय वीयराय कह्यां पड़े खमासमण पूर्वक मस्तक नमावी ॥ सिरि थंत्रणयध्यि पास सामिणो ( इत्यादि दोय गाथा कहै) ऊना थई । वंदणव० अन्न कही ४लोगस्सनो कानसग्ग करै (पारी ) प्रगट लोगस्स कहै (इम हीज) दादा जी श्रीजिन दत्त सूरिजीनो कानसग्ग करै) पारी मुखे लोगस्स कहै । पड़े। दादाजी श्रीजिन कुशल सूरिजीनो कानसग्ग करै। (पारि) मुखे लोगस्स कहै परे । गोटी शांति कहै (जो) शांति न आवै ( तो ) १६ नवकारनो कानसग्ग करै । पठे। ३ खमासमण देई । चनक्कसायनो चैत्यबंदन जय बीयराय सूधी करै । सर्व मंगल कहै ॥ चनक्कसायनो चैत्यबंदन सूती बखत करनेकाहै ( पिण ) हिवणा प्रवृत्ति ऐसीजहै ॥ पढ़ पूर्वोक्तरीतै सामा यक पारे। इति देवसी पमिकमण विधिः संपूर्ण ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ अथ अपुहरी पोसह विधि लिख्यते ॥ ॥
॥ रात्रीने पाउले विघमियै निद्रा दूर करीनें । पंचपरमेष्टि स्मरण करी। गृहचिंता परिहरी। पर्वदिवस थकी। प्रथम दिवसें। पमिलेही राख्याजे पोसहना नपगरण लेई । पोसह शालायें थापनाचार्य समीपें । अथवा गुरुनों संयोग हुवे (तो) गुरुने पासें आवी । नूमीप्रमार्जी । एक खमा समण देई । इरियाबही पमिक्कमें । पछै खमासमण देई । इलाका० सं० ज०। पोसह मुहपत्ती पमिलेहुं । ( गुरु कहै पमिलेहेह ) इडं कही। स्वमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । पचै कनो थई । खमासमण देई। इबाका सं००। पोसह संदिस्सा (गुरु कहै संदिस्सावेह)। प इहू कही। खमासमण देई । इबाका० सं० न०। पोसह ठग) गुरुकहै । गएह (पछै इई कही। खमासमण देई। कनो थई । आधो सरीर नगावी ।