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वारे व्रत पूजा
६८३ ॥ ॐ ॥ दूहा ॥ नवमी श्रीजिनराजनी। पूजा परमविलाश । विमलाक्षत राजनें । विजन करो प्रकाश ॥ १॥ राग पीलू ॥ अबतो नधास्यो मोहि चहीये जिनंदराय । राखुं नरोसोमें रावरै चरणको । ० ॥ ए चाल ॥ श्रीजिनवरजीकी सेवा सारै । सो नवजय दुःख दूरनिवारै । श्रीजि० ॥ तंडुलविमल सकलगुण मंकित । खंकितदोष रहित नरधारे। कंचनपात्र जरी जिना । ढोकन बुद्धि प्रबल सुविचारै ॥ श्रीजि० ॥ १ ॥ या पूजन जन तन मनरंजन । गंजन कुगतिकुं वोधविदारै । सबल करम नग नेदनहारो । सघन जवोदधि पारनतारै ॥ श्रीजि० ॥ २ ॥ सुमति सानुभव मान मिलावै । ते पण पद दिवश समारै । पीनमहोदय धार जावधरि । चंदकपूर सनूर नि हारै ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥ काव्यं ॥ यः खमजाति गुणवृंद समन्वितानि । नाढोकये प्रिपुल निर्मल तंडुलानि ॥ कर्म्मावलिं ऊटति बेद्य हिमजिनाये | सोवैजे विसुखं सुतरामनंतं ॥ १ ॥ ॐ श्री श्रीपरमात्मने अनंतानं ० ज० श्रीमति मनरथ विरमण व्रत उपदेशकाय प्रकृतं यजामहे स्वाहाः ॥ इति नवमी अर्थ दं विरमण व्रत पूजा ॥ ॥ ९ ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ दशमी सामायक व्रते दर्पण पूजा ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नवमो नव निधि जाणियै । सामायकवत सार । सुर जे ही सारे । सुरतरु समदातार ॥ १ ॥ राग ॥ प्रायरहो दिल वाग मैं होप्यारे जिनजी । प्राय० ॥ ए चाल ॥ सामायक व्रत पालरे । न विकजन | सामाय० ॥ टेरे ॥ त्रिकरण त्रिकजोगे इकमहुरत । निरतीचारै । चालरे । वि० ॥ १ ॥ सा० गृहव्यापार तजीनें सुनमन । धरि निरवद्य विशालरे । ज० ॥ २ ॥ सामा० ॥ मन वच वपु प्रणिधांन सेवन । स्मृति विहीनता टालरे । ज० ॥ ३ ॥ सा० ॥ द्वात्रिंशत दूषण परिहरिनें । पंचम गुण घरकालरे । ० ॥ ४ ॥ सा० ॥ इम धनमित्र तणीपर सीको । कुश
कला परनाल | ज० ॥ सा० । इति ॥ * ॥ दूहा ॥ दशमी दर्पण पूज ना । कर्ज श्रावक सु । सुरपादपसम शंकरण | हरणपाप संकुद्ध ॥ १ ॥ राग कालिंगको ॥ नेम प्रभुजीसुं कहज्योजी म्हांरा । नेम० ॥ ए चाल ॥ जिन पूजनमें रहीयैरे | म्हांरा जि० । मन बंबित फल लहीयेरे | म्हां०जि०