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रत्नसागर. चौबिहार धारणा प्रमाणे रक्खै ( तथा ) दिनमध्ये जल पणे में आ वै। तिसका प्रमाण रक्खै । तोलसें तथा मापसें ॥४॥ इति चौदह नियम भाषा ॥१४॥ समाप्तम् ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ द्वादश व्रतग्रहण करण विधि ॥ ॥ ॥ * ॥ प्रथम जिननुवन ( अथवा ) जिन प्रतिमा आगै शुध सपे द बस्त्र पहिरकै । चंदन केशरको तिलक करै । चावल चाढै । पीने । अ खंमतंकुल मुही ३ थाल मध्ये रक्खै । तिन ऊपर नालेर रोकनाणो धरै । तीन प्रदक्षिणा देकै । इरियावही पमिकमे । ( इबकार० ) सम्यक्त सामाई आरोहणार्थ चेश्याई वंदावेह ( गुरु कहै वंदावेमो) चैत्यवंदण करै । बाम पासै चावलांको साथियो करै । श्रीफल धरै । पी3 गुरू वर्धमान विद्या अनिमंत्रित श्रावक मस्तकै वास देष करै । वर्धमान स्तुतीसें देववंदन करावै। पीछे सतरै थूई में नवकार १ एकको का नसग्ग करै । पीने शासन देवी निमत्तै लोगस्स ४ कानसग्ग करै। (पार कै ) प्रगट लोगस्स कहै । पी नमस्कार ३ गुणकै । शकस्तव कहै। नमोझत् सिघा कहकै । बमो स्तवन कहै । पीने जयवीयराय कहै । इति नंदी विधिः॥ पीने खमासमण देई । श्रुतसामायक । आरोहणार्थ कानसग्गं करावेह ( गुरू कहै करावेमो ) पीछे सम्यक्त सामाइ आरोपणा थे करेमि कासग्गं । च्यार ४ लोगस्सको कानसग्ग करै ( पारकै प्रग ट लोगस्स कहै । पीने ३ बेर नवकार गुणकै । गुरुकै पास ३ वेर सम्यक्त दमक नचरै ॥ (गुरू) पाठ बोले । नशीकी मनमें धारणा रखे ॥१॥
॥॥ ( सूत्रं ) ( अहन्नं नंते ) तुह्माणं समीवे मित्तान पमिकमा मि । सम्मत्तं नवसंपजामि । नोमेकप्पइ । अऊप्पनिइ अन्नतीथिएवा । अन्नतीस्थि देवयाणिवा । अन्नतीथि परिग्गहिय अरिहंतचेश्याणिवा । वंदि त्तएवा । नमंसित्तएवा । पुर्वि प्रणालित्तएणं बाल वित्तएवा (तसिं) असणंवा। पाणंवा । खाइमंवा । साइमंवा दानवा । अणप्पानंवा । तेसिं गंधमलाइंपेसि नंवा । ( नन्नत्थ ) रायानियोगेणं । गणानियोगेणं । बलानियोगेणं । देवा नियोगेणं । गुरूनिग्गहेणं । वित्ती कतारेणं । तंचनविहं ( तंजहा) दवन।