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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ * ॥ अथ ( ९ ) ध्वज पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( दूहाः ) वीशजिनेसर शास्वता । पंचविदेह मजार । सीमंधर आ करी । प्रणमुं वारहजार ॥ १ ॥ गगन वीच प्रदद्भुतवणी | पंचवरण विकसंत | नवमीध्वज पूजा करी । देवो ला अनंत ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ सेजानो वासी प्यारो लागे म्हांराराजिंदा ( ए चाल० ) ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ विहरमांन जवि ध्यावो म्हांरारा जिंदा | ध्या० ॥ वि० ॥ सीमंधर जुगमंधर स्वामी । बाहु सुबाहु सुहावे । म्हां ॥ वि० ॥ श्रीसुजात स्वयंप्रजु सेवो । शषजानन मनजावे | म्हां० ॥ वि० ॥१॥ अनंत वीरज सिरी सूरप्रभूजी । दशमो विशाल कहावे | म्हां० ॥ वज्रधर जिन जवि सेवो जुगतै ।' बोधबीज पजावै | म्हां । वि० ॥ २ ॥ चंद्रानन जिन चंद्रबाहूजी । नु जंग ईशर सुखपावे । म्हां । नेमप्रजू जिन गुण मणि दरियो । वीरसेन मुनिरा | म्हां ॥ वि० ॥ ६ ॥ प्रहारम महानद्र सुशेवो देवजशा नित ध्यावो ॥ म्हां० ॥ अजित वीरज जिनवीशमो ध्यावो । देख्यां हरख नमावै । ह्नां । वि० ॥ ४ ॥ पंचविदेहे एजिनसो है । सोवन वरण सुहावै ॥ ह्मां० ॥ चौरासीलख पूरव प्रयु । शाशता एहिजपावे । ह्मां० । वि० ॥ ५ ॥ परमपु रख एवीश जिनेसर । ए जगसार कहावै ॥ ह्मां० ॥ सुमति कहै ए जिनवर पूजो । निजगुण ज्युं नवि वै । ह्मां० वि० ॥ ६ ॥ ॐ श्री परमा° सहस कूट॰ ध्वजं यजामहेः ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ अष्टमंगल पूजा ॥ ॥
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॥ ( दूहा ॥ पंचविदेहै शासता । एकसो साठ जिनंद | कल्या एक जिनराजना । प्रजो अधिक आनंद ॥ १ ॥ सधव मिली प्रतु याग लै । मंगल प्राठकरंत । तन मन उऊल जावसुं । हृदयकमल विकसंत ॥ ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ ( हांहोरे देवा ) बावना चंदन घस० (ए चाल )
॥ ॥ ( हांहोरे देवा ) पंचविदेह विराजता । उतकृष्टा सह जिनराजए। हांहो० ॥ एकसो साठ सुहंकरा । जगबंधव जग शिरताजए ॥ हां० ॥ जनमसमें त्रिहुं लोकमें । हरखित हुवै सहु सुरराजए || हां० ॥ चौसठ सुरपति नावसुं । नव करे हित सुख काजए ॥ २ ॥ हां० ॥ च्यवन जनम