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ग्यानपंचमी देववंदन सिझाय
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ते नर इम हीज आया । ( ० ) ॥ ६ ॥ सूत्र मांहि तो मारग दोय बै | निश्चय नय व्यवहारा । विनय चंद्र कहै ते आदरियै । तजि मन मद न विकारा । ( ० ) ॥ ७ ॥ इति श्री प्रष्णव्याकरण सूत्रसिझायः ॥ १० ॥ ॥ * ॥ अथ ( ११ ) विपाकसूत्र सिझाय लि० ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल कमखानी ) ॥ ॥ सुणोरे विपाक श्रुत अंग इग्यारमो । तजो विकथा वृथा जे अनेरी । ललित नवांग जसु प्रवर पुष्फ चूलिका । मूलिका पाप आतंक केरी ( सु० ) ॥ १ ॥ असुन किंपांक सम कृतफल जोगवी । नरकमां गरकथया जेह प्राणी । सुकृतफल जोगवी स्वर्गमां जे गया ! तास वक्तव्यता इहां आणी ( सु० ) ॥ २ ॥ दोय श्रुत खंधनें बी श अध्ययन वलि । बीश उद्देश इहां जिन प्रयुंजे । सहस संख्यात पद कुं द मचकुंद जिम । बहुल परिमल भ्रमर चित्तगुंजै ( सु० ) ॥ ३ ॥ सरसचं पकलता सुरभि सहनें रुचै । अन्य उपगारनी बुद्धि माटे । सूत्र नपगार तेह थी सबल जाणियै । जेहथी पुरुष सुख अचल खाटै ( सु० ) ॥ ४ ॥ बंधनें मोहना बेनं कारण । दुकृतनें सुकृत जोवो बिचारी । दुक्कतनें पर हरी सुकृतनें आदरी। जिन वचन धारियै गुणसंभारी ( सु० ) ॥ ५ ॥ मकररे मकर निंद्या निगुण पारकी । नारकी तणी गति कांई वांधै । नारकी प्रकृत तजि सहज संतोष जज । लाग श्रुत सांगली धरम धंधै ( सु० ) ॥ ६ ॥ सुक्खनें क्ख विपाक फल दाखव्या । अंग इग्यारमें बीत रागे । चिरजयो वीरशासन जिहां सूत्र थी। कवि विनय चंद्र गुण ज्योति जागे (सु० )॥७॥ इति श्रीविपाकसूत्र सिझायः ॥ ११ ॥ 11 11 ॥ *॥
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॥ * ॥ थ इग्यारे अंगकी बना लि० ॥ ॥* ॥ ( ढाल वधावानी) अंग इग्यारह में थुएया। (सहेलीए) आज था रंगरोलकि (स०) नन्दी सूत्र मांहि एहनो (स० ) । यो सर्व निचोल कि ॥ १ ॥ ( सहेलीए आज वधामणा ) पसरी अंगइग्यारनी (स० ) मुज मन मंप बेल कि । सींचते हरखे करी (स० ) अनुभव रसनी रेलकी ॥ २ ॥ हे घरी जे सांजलै (स० ) । कुंण बूढा कुण बालकि । तो ते फल लहै फ्रूट रा (स० ) स्वादें प्रतिहि रसाल कि || ३ || हरख पार घरी हीयै ( स ० )