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श्रीसमेत शिखरजी की पूजा.
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अरतिमथनमुदारधूपं ॥ ए चाल ॥ नमिजिनेशर जगदिनेशर । पूजो नविजन नावरे । जगतपति जिनराज साहिब । जवसमुद्रनो नावरे ॥ न० ॥ १ ॥ इंद्र चंद्र सुरेंद्र नर सुर । पूजनको जसुचावरे ॥ तरण तारण कृपासा गर | सेवनको अवदावरे ॥ न०॥ २ ॥ पुन्यनदै प्रभु दरसनपायो । प्रानंदकंद सुननावरे । बालक है प्रजुके चरणकी । सरणमोहि सुहावरे ॥ न० ॥ ३ ॥ इति । श्री परमात्मने० प्रनं० जन्म० श्रीमत्० श्रीनमिजिनेंद्रायष्ट द्रव्ययजामहेस्वाहाः ॥ १९ ॥ ॥ 11*11
॥ ॐ ॥
॥ ॥ अथ बीशमीपूजा ॥
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॥ * ॥ दूहा ॥ * ॥ पारश पारशनाथका । गुणगातां गहिगट्ट । कष्टटलै संपति मिलै । मनवंबित फलथट्ट ॥ १ ॥ राग । सांवरीयास्वामीजी बमो हितारो ॥ ए चाल ॥ शांवरियासाहिबकी बलिहारी सां० ॥ अश्वसेनतात वामा देवीमाता । पाश जिणंद है सुखकारी ॥ सां० ॥ १ ॥ जाकेगुनको पारनपावै । इंदनरेंद नरनारी ॥ सां० ॥ नवनवनमतां प्रभुजीमेंपाया । दुरगति दूर निवारी ॥ सां० ॥ २ ॥ अबमें प्रजुबिन और नचाहुं । एहीमुऊमन इकतारी | बालक प्रसाहिब मेरे । शिवसुखदो मोहितकारी ॥ सां० ॥३॥
॥ ॐ ॥ ढाल दूसरी ॥ तेजतरणमुखराजै । हां मुख० एचाल ॥ जविजन शिखरसमेत वधावो । ०। वीसजिनेशर मुगतसिधाए। ए तीरथ जगचावो । न १॥ द्रव्य भावकरी पूजरचावो । त्रिभुवनपति गुणगावो । समकित पुष्टालंबन कारन। एसम नर नजावो ॥ ०२ ॥ सकल संघ मकसूदाबादमें। आनंद अधिक बढावो । क्ति जावसे प्रभुजीकुं पूज्या | मनवंबित फल पावो ॥ २०३ ॥ संवत सिधि नननिधि वसुधा सुत्र । कार्त्तिक सुदि पणचावो। जिन सौभाग्य सूरी सर गुणनिधि | खरतर गपति चावो ॥२०४॥ प्रमृत लान समुद्र पसायै ॥ पूजर चीनवि जावो ॥ बालचंद परमातम प्रभुका ॥ हरष हरष गुण गावो ॥ ०५ ॥ इति
श्री श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यानशक्तये जन्म० श्रीमत् पार्श्व जिनें द्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥ २० ॥ राग कमखो ॥ शिखर गिरितीर्थकर वीश जिनवर मुदा । प्रक्ति जर नविकवर पूज करियै । अष्टविध विविध धरि सिद्धि नवनिधि सही । सुवट घट संपदा प्रगट वरियै । शि० १ । विकट बट