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६७२ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. लगावो प्रनूसें ॥ नरक निगोद नजावो ॥ मत्रि०२ ॥ परम पुरुष परमेशर प्रनुको । चरण शरण मननावो । दीनदयाल दयानिध पूजत । वाल परम सुख पावो ॥ मत्रि० ३ इति । नक्षी श्री परमात्मने श्री अरनाथ जिनंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः॥१६॥ ॥
॥ ॥... ॥॥अथ सतरमी पूजा ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ कुंन समुद्भवजगधणी। मल्लिजिनेसर देवाजसु पद पंकज की करै । इंद्र चंद्र नितसेव ॥ १ ॥ राग कल्याण । तेरी पूजावनी तेरसमैं ते० एचाल ॥ मेरी लगन लगी जिन चरणें । मल्लिजिनंद सुखकरण। होमेरी ॥त्रिनुवन नायक सब सुख दायक । एप्रनु अशरण शरणें ॥ होमेरी० १॥ अनुपम रूप विराजित प्रनुजी। सोजत सोवन वरण ॥ होमेरी०२॥ अकल अगोचर प्रन्नु नपगारी ।ध्यावो सब मुख हरणै । होमेरी० ॥ जो निज आतम कुं सुखचावो । लावो चित्त समरणै ॥होमेरी०॥बालकहै प्रज्नु अधम नधारन रखलीजै मोहि सरणे होमे० ॥ ३ ॥ नक्षी श्री परमात्मने श्री मलिजिनं द्राय अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहाः॥१७॥ ॥
1 ॥ ॥ ॥ अथ अधारमीपूजा॥8॥ ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ विंशतितम जिनवर नमुं। मुनिसुव्रत जिनचंद । जावै लविजन नेटियै । दूरटलै अविफद ॥१॥ रागमल्हार ॥ चिहुंजर बदरियाबरसै ॥ ए चाल ॥ मुनिसुव्रतस्वामीदरसै ॥आजानंद घनवरसेहो मु०॥ समेतशिखरपर प्रनुपद पंकज । पुन्यप्रसादै फरसैहो।मु० ॥१॥ अनुदर शन घनघोर घटालख । मोरनयनयुग तरसै॥ हो मु०॥ विजनचात्रक प्रजुगुन गावत । जावत नावन जरसै ॥ हो मु०॥२॥धर्मध्वनिजाके नपजत खेती । कर्म निरसहोय निरसै ॥ हो मु० ॥ बालप्रसाद प्रजुजीके आतम । परमातम प्रनु सरसै ॥ हो मु०॥३॥ इति । नक्षी श्री परमात्मने अनं० जन्म श्रीमत् श्रीमुनिमुव्रतजिनेंद्रायअष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥१८॥
॥ ॥ अथ नगणीसमीपूजा॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ नमिजिन पूजो नावसों। विक शक्ति मनलाया। जावसुध जिन पूजतां । पुरगति दूर पुलाय ॥ १ ॥ राणमालवीगोली ॥ सब