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श्रीसमेत शिखरगिरी पूजा.
६७१ अथ चवदमी पूजा॥ 18 ॥ ( दूहा) शांति करण सब पुःखहरण । शांतिजपो सुखकार । शिव सुखदायक जगतगुरु । परमातम अविकार ॥ १॥राग गौमी ॥ केसरीयाने ज्याजको लोक तिरायो । ए अचिरिज मोहि आयो के० एचाल ॥शांतिजि नेसर ध्यावोनिविजन शांतिका तरण तारण नवसागर जिनको । तीनजगत जस चावो ॥न शां०१॥शांति सुधारस नाम प्रन्नुको । समरण कर मन जावो । कर्मकोट सतखम हुवै तब। सुघ सरूपी थावो ॥ ज० शां२ । भक्ति करो मनसुध जगवंतकी।मन सुध प्रनुगुण गावो। बालकहै प्रजुके सेवनसैं । मनवंचित फलपावो । न० शां० ३ इति नक्षी श्रीपरमात्मने श्रीशांतिजि नेद्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥१४॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ पनरमी पूजा ॥ ॥ सोरठो ॥ कुंथुजिनेसर देव । नविजन पूजो नावथी। चरण कमल की सेव । इंद्रादिक नित प्रति करै ॥ १॥राग सोरठ ॥ कुंद किरण ससि ऊजलोजी देवा। पावन घसि घनसारोजी आगे॥ एचाल ॥ चंद्र किरण जेसो कजलोरे देवा । जग जश प्रनुविस्तारोजी ॥ आगे ॥ अनंत गुणेकरी सोनतारे ॥ देवा ॥ कुंथुजिनंद जग सारोजी ॥१॥आगे॥ कामि त दायक मुरतरूरे देवा ॥ सर्व जीवन प्रति पालोजी॥आगे॥ नवि जन पूजो नावथीरे॥देवा॥ ए प्रनुपरम आधारोजी॥२॥आगे शिवसुख दायक साहिबारे ॥ देवा ॥ पतित नधारन हारोजी। आगे वालचंद्र जिनचंद नोरे
देवा।सरणगह्यो सुखकारोजी ॥यागचंद्र० ३ इति ॥ नक्षी श्रीपरमात्मने श्री कुंथु जिनेंद्राय अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥१५॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सोलमी पूजा ॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ श्री अरनाथ जिनंदनी। पूजा अष्टप्रकार । करियै मन सुध नावसों, नवनव सुखदातार ॥ १ ॥ राग कालिंगडो ॥ मनारे जिन चरणा चितलावो, मनारे एहनी ॥श्री अरनाथ कुंध्यावोमनारे त्रिनुवन पति गुण गावो।।म त्रिनु०॥असो अवरन देव जगतमैं। जाको जगजश चावो॥ मत्रि०१॥ सूर नरेसर नंदन प्रनुजी ॥ मात प्रनावती गवो॥तन मन लगन