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रत्नसगर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
कर्म की जोट दूरे करी । विबुध बुध आत्म निज सुवि धरियै । चरण जिनस रण गहि भवतरण जन लहै । चरण दरसण नही ज्ञान चरियै । शि० २ । धन्य दिन आज जिनराज गिरराज चढ | दरस लहि सरस संसार दरियै । धर्म धर मगन जिन जक्ति पूरनगही । दुरति गति दुःखसें दूर टरिये । शि० ३ । अष्टनम निधि सदा सिद्धि सुद माधमें। पूज करि शक्ति निज जक्ति नरियै । बाल प्रतिपाल सुविसाल गुनगावतां । धार जव वार निधि पार तरियै । ॥ शि० ॥ ४ ॥ इति श्रीबालचंदजी उपाध्याय कृत समेत शिखरगिरी पूजा संपूरणम् ॥ ॥
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॥ अथ वार व्रतकी पूजा लिख्यते ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्रथम समकित द्रढ करण जल पूजा ॥ दूहा । व्रत बारै यादर करी । पूजा तेर विधान | आनंदादिक संग्रही । सप्तम अंग प्रधान ॥ १ ॥ राग सरपदो || ज्योति सकल जग जागती हां० ॥ ए चाल || ज्योति विमल जगजलहलै । हां रे प्रयोऊ ए । शाशन पति जिनचंद | त्रिकरण प्रणमन करिनमूं । वीरचरण अरविंद ॥ १ ॥ न्हवन १ विजेवण २ बासनी ३ । हांरे० । मालं ४ दीवंच ५ धुवणियं ६ ॥ फूज ७ सुमंगल ८ तंडुला ९ ॥ हां रे० ए० ॥ श्रमतं दप्पणंच १० नैव ११ ॥ २ ॥ ध्वज १२ फलवृंद १३ एमेलियै । हां० ए । पूजा त्रिदश प्रकार । हांए । व्रत ग्रहि अनुक्रम रचीयै । जगपति जगदाधार ॥ ३ ॥ सिवतरु सुखफल स्वादनो। हांरे० । दायक गुणमणि खांण । हांए। कुशल कला कजना थकी। प्रगटै परम निधान ॥ ४ ॥ दूहा ॥ समकित बत धुर आदरो । मेटो निज मन नर्म । दूर थकी ए परि हरो । कुगुरु कुदेव कुधर्म ॥ १ ॥ धुर दर्शना सुचरण
सण धीर वीर्य वखानियै । तपइम सकजना सिद्धि गज वसु पण तिवार मुठानियै । व्रत बारना अतिचार शर शर परम गुरुमुख जानिये । करित्याग राग प्रशस्त धरिमन विमल संबर मानियै ॥ १ ॥ राग रामगिरी ॥ गात्र तू है जिनमन रंगसूं रे देवा । स० । ए चाल ॥ घुर समकित व्रत चित धरोरे बा रहा । जवजय दुःख दल परिहरो । परिहरो हां रे बाल्हाप० । शिवरमणी वर लीजीयै ॥ १ ॥ वीर जिनेसर बंदीयैरे बाल्हा । जिम चिरकालसुं नंदीयै ।