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बारै व्रतकी पूजा.
६७५ नं० हारेवा० ॥ कुमति पुरति सरकीजीयै ॥२ ॥ चरण करण गुण माण निलोरे बाल्हा । जगजन तारण सिरतिलो। सिं० हां० ॥ सदगुरुचरण नमीजीय ॥ ३ ॥ जिन जाषित श्रुतसागरोरे बा० नेद विविध विधि आगरो। आगरो० हारे० ॥ श्रवण जुगलकर पीजीय ॥ ४ ॥ जिन शासन जिनधर्म नोरे बा० । रागदलन वसुकर्मनो। कर्म । हां । कुश लकला रसनीजीयें ॥५ इति ॥ दूहा ॥ सकल करमदल मलहरण । पूजा धुर जलधार । जगनायक जिनतुंगनी। नरधर नगति नदार ॥१॥ रागळिं जोटी॥ निरमल होय नजलै प्रजुप्यारा । सव०॥ए चाल ।। जिनवर न्हवण करण सुखदाई।बूटै जनम मरण पुःखदाई। जि। टे॥खीरजलधि गंगोद कमांहि । अमल कमल रस सरस मिलाई । जिन० ॥१॥ निरमल शकल परम तीरथ जल । मणियुत कंचन कलश नराई॥ जिन॥२॥या जिन जीके नवण करणते । नवनय पुःखदल दाघसमाई। जि०॥३॥ द्रव्य नाव विधि समकित फरसै । तेनर नरक निगोद न जाई॥जि०॥४॥ यातें जवि जनके मुख नासै । कपूर कहै सुरहोत सहाई ॥ जि० ॥५॥ इति०॥काव्यं परमलंकृत संस्कृत श्रध्या । स्नपति यो जिनचंद्र मिमंमुदा । जवनयं परिमु च्य सदोदयं । जजति सिधिपदं सुखसागरं ॥१॥नक्षी श्री परमात्मने अ नंतानंत ग्यानसक्तये । जन्मजरा० श्रीमद् श्रीसमकितव्रत उपदेशकाय जलं यजामहेस्वाहा । इति प्रथम समकित व्रतपूजा ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ प्राणातिपातव्रते केशर चंदन विलेपन पूजा ॥७॥
॥ दूहा ॥प्राणातिपात विरमण व्रतें। मो जंतु विनास । इणसुं शिवसुख नामिले । हिंसा दोषविलास ॥ १ ॥ हमकुं गंडचले बनमा थो । राधा० ॥ ए चाल ॥ नविजन जीवदया व्रत धारो । सम परिणा म संनारोरे । न० ॥ टेरे ॥ अपराधी पिण जीव न हणियै । नारे जगदा धारोरे। देशविरति धरनें पिण नाख्यो। विन अपराध न मारोरे। न. गो गज सेंधव महिषा दिकनें । बंधन वध न विचारोरे । कीजै न अवयव बेद त्रिकाले । जल चारो न विसारोरे॥न० ॥२॥ कीमी कुंजरने सम गिणीय । सुख दुःख जोग विकारोरे। थावर त्रस पंचेंद्यादिकनो। होय रहि