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बम्माशी तप स्तवन विधि
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तप कियो । ( इसीसें ) इस काल में संवयण बल पराक्रम के हीनपणासें इ कसार माशी तप न कर शके ( तोपि ) बम्माशीके ( १८० ) उपवास करनेसें । जघन्य म्माशी तपकै फलकों प्राप्तहोय । और देवबंदनादि सर्व क्रिया करे । उम्माशी तपका स्तवन शु। इस बम्माशी तपके स्तव नमें । सर्व तपस्या की संख्या कही है ॥ * ॥
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१ ॥ श्री महावीर स्वामी नाथाय नमः ॥ * ॥ इसी को ( २००० ) गुणनो करै । भगवंत श्रीमहाबीर स्वामीके नाम सें तीर्थ प्रसिद्ध होय । नहां यात्रा करनेकों जावै । अनेकतरेसें शुमा वना जावै । शक्ति माफक उद्यापन करे । इस तपस्या के प्रशाद लघुकर्मी अनन्त सुख प्राप्त होय ॥ ॥ इति बम्मासी तप विधिः ॥ ॥ ॥ ॥ अथ बारे माशी तप स्तवन लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ दांन नट घरी दीजीये। (एदेशी) ॥ ॥ त्रिभुवन नायक तुं ध णी | आदि जिणेसर देवरे । चौसठइंद्र करे सदा । तुऊपद पंकज सेवरे ( त्रिजु० ) ॥ १ ॥ प्रथम नूपाल प्रनु तुथयो । इण अवसरपणी कालरे । तुम सम अवरनको प्रतु । तुं प्रभु दीन दयालरे ( त्रि० ) ॥ २ ॥ प्रथम ती
करतुं सही । केवल ग्यान दिनंदरे । धर्म प्रज्ञापक प्रथम तूं । तूंही है प्रथम जिनंदरे । (त्रि ० ) ॥ ३ ॥ अंतर अरिजे प्रातम तथा । काल अनादि थितिहरे । ते तप शक्तिये तेंहण्या | आत्म बीरज गुण गेहरे ( ० ) ४ ॥ ताहरी शक्ति कुण कह शकै। जेहनो अंत न पाररे । प्रादश माशनो तप करयो । तेह प्रपानक साररे ( त्रि० ) ॥ ५॥ एह नत्कृष्ट तप वरणव्यो । आागम में जिन राजरे । ते करयुं प्रति करुं तप विना किम सरै काजरे (त्रि० ) ॥ ६ ) तीनशे साठ नपवास ते । जे इण पंचम कालरे । अवसर यादरे क्रम विना । ते पिण नवि सुविसालरे ( त्रि० ) ॥ ७ ॥ ए तप गुरुमुख प्रादरै । शास्त्र त अनुसाररे । पक्किम शादिक नावथी। सुक्रिया मन धाररे (त्रि० ) ॥ ८ ॥ चित्तसमाधि सुन जाव थी । धेरै ताहरो ध्यानरे । ते नर उत्तम फल लहै । बलिलहै उत्तम ग्यानरे ( त्रि० ) ॥ ९ ॥ काल अनादि संसारमें । जन्म मरण तथा डु