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કરર
रत्नसागर. गै अष्ट मंगलीक रचना करे । अष्ट द्रब्य चढावै । देव बंदनादिक करके धर्मोपदेश शुणे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ श्रीवाश पुज्यस्वामी सर्वज्ञाय नमः॥ॐ॥
॥ ॥ इसी को (२०००) गुणनो करे । ऐसें सात वरश (यह) तप करनेसें । सुख शौनाग्य बधैगा । विशेष अधिकार । यह रोहणी तप का स्तवन सुणनेंसें मालुम होगा (अलं विस्तरेण ) इति रोहणीतप विधिः॥
॥॥अथ उम्माशी तप स्तवन लि०॥ ॥ ॥ ॥ गोतम स्वामीरे बुध दो निरमली । आपो करिय पसाय । म हावीर स्वामी जे जे तप कीया । तेहनो कहिसुं विचार (वलि २ बांडु बीरजी सुहामणा) ॥१॥नावठ मंजण सेव्यां सुख करै । गातां नवनि धि थाय । बारै वरसां बीरजी तपकीयो । दूरकरै सहु पाप (व० ) ॥ २॥ वे करजोमी एडं वीनवु । श्रीजिन शाशन राय । नाम लियांथी नव निधि संपजै । दरशण पुरित पुलाय (व.)॥३॥ नव चौमाशा जिन जीरा जांणियै । एक कियो उम्माश । पांचे कणा उ वलि जाणीयै । वार के को जी माश (व०) ॥४॥ बहुत्तर माश खमण जग जीपता । दो माशीरे जाण । तीन अढाई दो दो कीया। दो दोढमाशी वखाण (व.) ॥५॥जद्र महानद्र शिवगति जाणीयै । नत्तम एहना प्रकार । बिचमें पा रणो स्वामी नवि कीयो । नवि कीयो चौथो आहार ॥४॥ (व०) तिहुं नपवासे प्रतिमा बारमी । कीधा बार जी माश । दोयसै बेला जिनजीरा जाणीयै । इम गुणतीस विलास ( व० )॥६॥ तीनसै पारणा जिनजीरा जाणी । तीन गुणतीश पचाश । एहमें स्वामी केवल पामिया। पांम्या मु गति आवास (व० )॥६॥(कलशः) इम बीर जिनवर सयल सुखकर अतही उक्कर तप करी । संयम सुपाली कर्म टाली स्वामी शिवरमणी वरी। सेवक पनवं बीर जिनवर चरण वंदित तुमतणा । संसार कूप पमंत राखो आपो स्वामी सुखघणा ॥७॥॥॥ इति उम्माशीतप स्तवनं ॥ ॥ॐ॥
॥॥अथ उम्माशी तप विधिः॥8॥ - ॥ * ॥शाशनके अधिपति श्री महावीर स्वामी। सबसें नत्कृष्ट उम्माशी