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रत्नसागर.
मतणा नाथ जीवातु जीवों ॥ ३ ॥ ॥ ( श्लोकः ) ॥ बिमल केवल नासन जास्करं । जगति जंतु महोदय कारणं । जिनवरं बहुमान जलो घतः । शुचिमनः स्त्रपयामि विशुद्धये ॥ १ ॥ नँ की परमात्मने । अनंतानंत ज्ञान शक्तये । जन्मजरा मृत्यु निवारणाय । श्री मनेिंद्राय । जलं यजाम हे स्वाहा ॥ १ ॥ इति जलपूजा ॥ * ॥ जलसें न्हवण करावै ॥ * ॥ ॥ * ॥ थ २ चंदन पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ ( दूहा ) बावना चंदन कुमकुमा । मृगमदनें घन सार ॥ जि न तनु लेपै तसुटलै । मोह संताप विकार ॥ १ ॥ ( ढाल ) सकल संताप निवारण तारण सहु नवि चित्त । परम अनीहा रिहा तनु चरचो नवि नित्त ॥ निज रूपै उपयोगी धारी जिनगुण गेह । जावचंदन सुह जाव थी टालै दुरित ह ॥ २ ॥ ( चालि ) जिन तनु चरचतां सकल नाकी कहै कुग्रह उष्णता आज थाकी ॥ सफल अनिमेषता आज झाकी । न पता अझ तणी आज पाकी ॥ ३ ॥ ( श्लोकः ) सकलमोह तिमश्र वि नासनं । परम शीतल जावयुतं जिनं ॥ विनय कुंकुम चंदन दर्शने । सहज तत्व विकाश कृतेर्च्चये ॥ १ ॥ ी परमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये ॥ जन्मजरा मृत्यु निवारणाय । श्रीमनेिंद्राय । चंदनं यजामहे स्वाहा ॥ २ ॥ इति चंदनपूजा ॥ * ॥ केसर चंदन चढावै ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ ३ पुष्प पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( डुहा) शतपत्री वर मोगरा । चंपक जाइ गुलाब || केतकी दमणो वौलसिरि। पूजो जिन नरि बाब ॥ १ ॥ ( ढाल ) अमल अखिं त विकसित सुन सुमनी घन जाति । जाखीलो टोमरतवो अंगीरचो बह जांति ॥ गुण कुसुमें निज आतम मंमित करवानव्य ॥ गुणरागी जरुत्यागी पुष्प चढावो नव्य ॥ २ ॥ ( चालि ) जगधणी पूजतां विविध फूलै | सुरवरा ते गिणें कण मूलै ॥ खंति घर मानवा जिनपद पूजै । तसुतणा पाप संताप धूजे ॥ ३ ॥ ( श्लोकः ) विकच निर्मल शुद्ध मनोरमै । विशद चेतन नाव समुद्भवैः ॥ सुपरिणाम प्रसून घनेर्नवैः । परमतत्व मयं हि यजाम्यहं ॥ १ ॥ जी परमात्मने पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ इति ॥ * ॥