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देवचंदजीकृत अष्टप्रकारी पूजा ५७१ न्हवण करै प्रनु अंग । करिय विलेपण पुप्फ मालठवि । वर आचरण अन्नं ग ॥ सो० ॥१॥ तब सुर वर बहु जय २ रख करै । नच्चेधर आणंद । मोक मारग सारथ पति पाम्यो । नाजिमु हिव नवकंद ॥ सो० ॥२॥ कोमिब त्तीस सोवन्न नवारी । वाजतै वरनाद । सुरपति संघ अमर श्री प्रजुनें। ज ननीने सुप्रसाद । ३ सो॥आणीथापै एम पयं पै । अह्म निसतरिया आ ज। पुत्र तुह्मारो धणीय अह्मारो । तारण तरण जिहाज ॥ ४ सो०॥ मात जतन करि राखिज्यो एहनें । तुह्म सुत अह्म आधार । सुरपति जगति स हित नंदीसर । करै जिन नगति नदार ॥५ सो० ॥ निय निय कप्प गया सवि निर्जर । कहितां प्रनु गुणसार । दिदा केवल ज्ञान कल्याणक । इछा चित्त मकार ॥ सो॥६॥ खरतर गह जिन आणा रंगी। राज सागर न वशाय । ज्ञान धरम दीपचंद सुपाठक । सुगुरु तणे सुपसाय ॥सो० ७॥ देवचंद निज जगते गायो । जनम महोसव बंद । बोधबीज अंकूरो नव्ह स्यो । संघ सकल आणंद ॥सो० ८॥ (ढाल )॥ इम पूजा जगतै क रो। आतमहित काज। तजिय बिनाव निजनावना। रमतां शिवराज॥१॥ इ०॥ काल अनंतें जे हुवा । होस्यै जेह जिणंद । संपइ सीमंधर प्रनु । केवल नाण दिणंद ॥३०॥२॥ जनम महोत्सव इणि परै । श्रावक रुचि वंत । बिरचै जिन प्रतिमा तणो । अनुमोदन खंत ॥३०॥३ देवचंद जिन पूजनां । करता नवपार । जिन पमिमा जिन सारखी । कही सूत्र मकार ॥ इम०॥ ४॥ इति स्नात्रपूजा विधि संपूर्णम् ॥ ॥ ॥
॥अथ अष्टप्रकारी पूजा लिख्यते॥॥
॥॥अथ १ जल पूजा॥॥ ॥॥ (दूहा ) गंगामागध दीरनिधि । नषध मिश्रितसार । कुशुमें वा सित शुचिजलें । करो जिन खात्र नदार ॥१॥ (दाल) मणि कनकादि क अमविध करि नरी कलश सफार । शुन्न रुचि जे जिनवर नमें तसुनही कुरित प्रचार । मेरुशिखर जिम सुरवर जिनवर न्हवण अमान । करता वर ता निज गुण समकित वृधि निधान ॥१॥ (चंद) हर्ख नरी अप्सरावृंद आवै । मात्र करि एम आसीस नावै । जिहां लगै सुरगिरि जंबुदीवो।