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देवचंदजीकृत, अष्टप्रकारी पूजा. ५७३
॥॥अथ ४ धूप पूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ (दूहा) कृष्णागर मृगमद तगर । अंबर तुरक लोबान । मेल सुगंध घनसार घन । करो जिननें धूपदान ॥१॥ (ढाल) धूपघटी जिम म हमहै तिम दहै पातिक वृन्द ॥ अरति अनादिनी जावै पावै मन आणंद ॥ जे जिन पूजै धूपै नव कूपैं फिर तेह ॥ नावै पावै धुवघर आवै सुक्ख अ नेह ॥२॥(चालि ) जिनघरे वासतां धूपपूरै । मित्त पुर्गन्धता जाइ दूरै॥धूप जिम सहज कर्ष गत स्वनावै । कारिका नच्चगति नाव पावै ॥३॥ (श्लोकः) सकल कर्म महेंधन दाहनं । बिमल संबर जावसु धू पनं ॥असुन पुजल संग विवर्जितं । जिनपतेः पुरतोस्तु सुहर्षितः॥ १ ॥ नशीपरमात्मने । धूपं यजामहे स्वाहा ॥४॥॥ ॥ॐ॥ इति धूप पूजा ॥ धूप अगरबत्ती खेवै ॥॥
॥ॐ ॥अथ ५ दीपपूजा॥8॥ (दूहा ) मणिमय रजत ताम्रना। पात्रकरी घृत पूर । वत्ती सूत्र कसुं बनी। करो प्रदीप सनूर ॥१॥ ( ढाल ) मंगलदीप वधावो गावो जिन गुण गीत ॥ दीपथकी जिम प्रालिका मालिका मंगलनीत ॥ दीपतणी सुन्न ज्योती द्योती जिन मुखचंद ॥ निरखी हरखो नविजन जिम लहो पूर्णा नंद ॥२॥(चाल) जिन गृहे दीपमाला प्रकासे । तेहथी तिमर अज्ञान नासै ॥ निजघटै ज्ञानज्योति विकासै । तेहथी जगतणा नावनासै ॥ ३॥ (श्लोकः ) नविक निर्मल बोध विकासकं । जिनगृहे सुन दीपक दीपनं ॥ सुगुण राग विमुच समन्वितं । दधतुनाव विकास कृते र्जना ॥१॥नक्षी परमात्मने । दीपं यजामहे स्वाहा ॥५॥ * ॥ इति दीपपूजा ॥ ॥ मंगलदीप चढावै ॥ ॥
॥१॥ ॥ॐ॥अथ ६ अदत पूजा॥ ॥ ॥ (दूहा) अक्त २ पूरसुं। जे जिन आगे सार । स्वस्तिक रचतां विस्तरै । निजगुण नर विस्तार ॥१॥ (ढाल) नऊल अमल अखंमित मं मित अवतचंग । पुंजत्रय करो स्वस्तिक आस्तिक जावै रंग । निज सत्ताने