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रत्नसागर. सन्मुख ननमुख नावे जेह । ज्ञानादिक गुणठगवै नावे स्वस्तिक एह ॥२॥ (चाल) स्वस्तिक पूरतां जिनप आगै । स्वस्ति श्री जद्र कल्याण जागे। जन्मजरा मरणादि असुन्न नागै । नियत शिव सर्म रहै तासु आगे॥३॥ (श्लोकः) सकल मंगलकेलि निकेतनं । परम मंगल नावमयं जिनं । श्र यति नव्यजना इति दर्शयन् । दधतु नाथ पुरोक्त स्वस्तिकं ॥१॥न क्षी परमात्मने । अतं यजामहे स्वाहा ॥१॥ इति अक्तपूजा ॥ अखंम चावल चढावै ॥॥
॥॥अथ ७नैवेद्यपूजा। ॥ ॥ (दूहा ) सरस सुची पकवान बहु । शालि दालि घृतपूर । धरो नैवेद्य जिन आगलै । इधा दोष तसु दूर ॥१॥( ढाल ) लपनश्री वर घेवर मधुतर मोतीचूर । सीहकेसरिया सेविया दालिया मोदक पूर । साकर द्राख सीवोमा नक्तिव्यंजन घृतसद्य । करो नैवेद्य जिन आगलै जिम मिलै सुख अनवद्य ॥२॥ (चाल) ढोवतां नोज्य पर नाव त्यागे । लविजना निज गुण जोज्यमांगे । अह्मन्नणी अह्मतणो सरूप नोज्य । आपज्यो तातजी जगत पूज्य ॥३॥ (श्लोकः) सकल पुजलसंग विवर्जनं । सहज चेतननाव विलासकं । सरसनोजन नब्य निवेदनात् । परम निर्वृति नाव महं स्पृहे ॥१॥ नक्षी परमात्मने । नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥४॥॥ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ 8 ॥ नैवद्य मिगई पकवान चढावै ॥॥
..... ॥॥अथ ८ फलपूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा ) पक बीजोएं जिन करै । ठवतां सिवपद देइ । सरस' मधुर रस फल गिणें । इह जिन नेट करे ॥ १ ॥ ( ढाल ) श्रीफल क दली मुरंग नारंगी आंबा सार ॥ अंजीर वंजीर दामिम करणा षबीज सफार ॥ मधुर मुस्वादिक नुत्तम लोक आणदित जेह । वरण गंधादिक र मणीक बहुफल ढोवै तेह ॥ २ ॥ ( चाल ) फलनर पूजतां जगत स्वा मी । मनुजगति बेलहै सफल पामी । सकल मनुध्येय गतिनेद रंगे। ध्यावतां फलसमाप्ति प्रसंगै ॥३॥ (श्लोकः ) कटुक कर्मविपाक विनासनं । सरस पक्काल ब्रज ढोकनं । वहति मोहफलस्य प्रनोपुरः । कुरुत सिधि