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वस्त्र, निमक; पुष्पमाला पूजा.
५७५ फलाय महाजना ॥ १॥ नक्षी परमात्मने । फलं यजामहे स्वाहा ॥ इति फलपूजा ॥८॥ श्रीफल सुपारी नीलाफल प्रमुख चढावै ॥ ॥
॥अथ अघे पूजा॥॥ . ॥ ॥ (उहा) इम अम विधि जिनपूजना । बिरचे जे थिरचित्त । मानवनव सफलो करै । वाधै समकित वित्त ॥१॥ (ढाल) अगणित गुण मणि आगर नागर बांदत पाय । श्रुतधारी नपगारी श्री ज्ञान सागर नवशाय । तासु चरणकज सेवक मधुकर पय लयलीन । श्रीजिन पूजा गाई जिनवाणी रसपीन ॥२॥ (चाल) संबत गुणयुग अचल इं। हर्ष जरिंगाइयो श्रीजिनें। तासुफल सुकृत थी सकल प्राणी । लहैज्ञान न्योत धन शिव निसानी॥३॥ (श्लोकः) इति जिनवरदं नक्तितः पूजयं ति । सकल गुणनिधानं देव चंद्र स्तुवंति । प्रति दिवस मनंतं तत्व मुद्भास यति । परम सहज रूपं मोद सौख्यं श्रयंति ॥१॥नशी परमा० अर्घ यजामहे स्वाहा ॥ च्यारे खूणे धार दीजै ॥ इति अर्घ पूजा॥॥
॥ अथ वस्त्र पूजा॥॥ ॥शको यथा जिनपतेः सुरशैलचूला। सिंहासनो परिमित स्नप नावसाने। दध्यक्तैः कुसुमचंदन गंध धूपैः। कृत्वार्चनंतु विदधाति सुवस्त्र पूजा ॥१॥ तत् श्रावक वर्ग एष विधिना लंकार वस्त्रादिकं । पूजा तीर्थ कृतां करोति सततं शक्त्या तिनत्यादृतः । नीरागस्य निरंजनस्य बिजता राते स्त्रिलोकीपतेः । स्वस्यान्यस्य जनस्य निर्वृति कृते क्लेशदया कांदया ॥ नक्षी॥ वस्त्रं० ॥ वस्त्र चढावै ॥ इति वस्त्रपूजाः॥ इति अष्टप्रकारी पूजा ॥
॥ ॥ अथ निमक उतारण पूजा ॥१॥ ॥ ॥ अह पमिनग्गा पसरं। पया हिणं मुणिवयं करि कणं । पम इ सलूण त्तण लझियंच। लूणहू अवहरंती ॥१॥ पिक्खेविणुं मुह जिण वरह । दीहर नयण सलूण । न्हावइ गुरु मबह नरिय। जलण पइस्सर लूण ॥२॥ लूण तारिह जिणवरह । तिन्नि पयाहिणि देव । तम तम शब्द करंतिये। विजा विऊ जलेण ॥३॥ जंजेण बिऊव थुई । जलेण त तह अत्थसदस्स । जिणरूवा मन्तरेणवि । फुट्ट लूणं तम तमस्स ॥४॥