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रत्नसागर.
॥ * ॥ एकही लू अग्निशरण करे ॥ (पीछे) लूण पाणी लेई । मुखें गाथा है ॥ ॥ सवि मुणवई जलविजल | तंतह जमरुइपास । अह वि कर्यंतस्स निम्मलनं । निग्गुण बुद्धि पयास ॥ ५ ॥ जल अणें विणु जलाहि पास । नरवि कयल जावहि पास । तिन्नि पयाहिणि दि निय पास। जिम जिय बट्टे व दुहपास ॥ ६ ॥ जलनिम्मल कर कमले हि विणुं । सुखइ जावहि मुणिवई सेवणं । पनण जिणवर तुहपर सरणं । नयतुट्ट जब्न सिद्धि गमणं ॥ ८ ॥ * ॥ ए कही लूण नतारी जल सरण कीजै ॥ इति निमक नतारण पूजा ॥ * ॥
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॥ ॥ अथ पुष्पमाला पहरावण पूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ उन्नय पयय नत्तस्स । नियठाणे संठियं कुणं तस्स | जिए पासै नमिय जणस्स । पितुह हुय वहे पणं ॥ १ ॥ सबो जिए प्पजावो । सरिसा सरिसेसु जेण रच्चंती । सर्व्वन्नू पासे । जस्स जमणं न संक मणं ॥ २ ॥ प्रच्चंत दुःकरं पिहू । हुयवह निवडे जडेण कथं । आणा सन्नू । न कया कयत्थ मूलमिणं ॥ ३ ॥ ए कही माला चढाईजै ॥ ॥ * ॥ अथ बूटा फूल पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ नवणेव मंगलेवो । जिणाण मुह लालि संवलिया । तित्थ पव तसमई । तियसे विमुक्का कुसुम बुद्धी ॥ १ ॥ ॥ एकही फूल बालीजै प्रभु आगे ॥ * ॥
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॥ ॥ अथ सतर गेंद पूजाकी विधि लि० ॥
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॥ * ॥ प्रथम स्नात्र करै । पीछे । अष्ट प्रकारी पूजा करै । फिर सोना रूपा प्रमुखकी रकेवी में । कुंकुम ( तथा ) केसर प्रमुखको साथियो करें। पीछे सुंदर कलश, केसर प्रमुख मिश्रित शुभजल नरी । रुपियो थापनाको कल शमेंरखी । कलश रकेबीमेंधरै । पीछे । स्नात्रया मुख कोस उत्तरासण करके । तीन नवकार गुणें । तीन नमस्कार करी । हाथे धूपदेई । रकेबी हाथ धेरै । मनथिर राखै । बीक वर्जे । स्नात्रिया प्रभुजी सन्मुख खमा रहै । कलश अडिग राखे । मुखे इम पढे । जावनले भगवंतनी ( इत्यादी ) ।