________________
सतरनेदी पूजा
॥ * ॥ अथ सतर नेद पूजा जि० ॥
॥
॥ * ॥ ( दूहा) जावनलै भगवंतनी। पूजा सतर प्रकार । परसिध कीधी द्रौपदी अधिकार ॥ १ ॥ * ॥ ( राग सरपदो ) ॥ * ॥ ज्यो ति सकल जग जागती ॥ ( हां इ० ) ॥ सरसति समरिसृजिंद ॥ सतर सुवि धि पूजा तणी । पणिसु परमानन्द ॥ १ ॥ ( गाहा ) न्हवण ( १ ) विलेवण (२) वत्थयुगं (३) गंधारहणंच ( ४ ) पुप्फरोहणयं (५) । माला रोहण (६) वन्नयं ( ७ ) । चुन्न ( ८ ) पागाय (९) प्रारणे ( १० ) ॥ २ ॥ मालकला सुयवंसुधरं ( ११ ) पुष्पंपगरंच (१२) मंगलयं ( १३ ) धूव नखेवो (१४) गीययं ( १५ ) । नहं ( १६ ) व ( १७ ) तहानयिं ॥ ३ ॥ सतर सुविध पूजा पवरं । ज्ञाता अंग मऊार । द्रुपदसुता द्रोपदि परै । क रियै विधि विस्तार ॥ ४ ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
५७७
॥ ॐ ॥
॥
॥ अथ प्रथम न्हवण पूजा ( राग देसाख ) ॥ ॥ ॥ * ॥ पूर्वमुख सावनं करि दसन पावनं । प्रहत धोती धरी नचित मानी । (अइयो० ) ॥ विहत मुखकोस के खीर गंधोदकै । सुनृत मणिक लश करि विवध वांनी ॥ ( ० ) ॥ १ ॥ नमवि जिनपुंगवं लोमहस्ते नवं । मार्जनं करि वावारि वारी । ( ० ) । नणिय कुशमंजली कजश विधि मनरली । नवति जिनइंद्र जिम तिम अगारी । ( ० ) ॥ ॥
हा ॥ # ॥ परमानंद पीयूष रस । न्हवण मुगति सोपान । धरम रूप तरु सचिवा | जलधर धारसमान ॥ १ ॥ पहली पूजा साचवै । श्रावक शुभ परिणाम | शुचि पखाल तनु जिणतणें । करइ सुकृत हित काम ॥ २ ॥ ॥ * ॥ अथ विधि (राग सारंग ) ॥ * ॥
॥ ॥ पूजा सतर प्रकारी | सुण जैनकी । ( पू० ) परमानन्द ति बल्योरी सुधारस । तपतबुद्धीय मेरे तनकी ॥ ( पू० ) ॥ १ ॥ प्रनुकं विलोकि नाम जतन प्रमारजित । करत पखाल सुचि धार वनकी । ( पू० ) न्हवण प्रथम निज वृजन पुलावत । पंककुंवरष जिम घनकी | | ( पू० ) ||२॥ तरणि तारणि नवसिंधू तिरणकी । मंजरी संपद फल बरधनकी । शिवपुर पंथ
७३