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५७८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. दिखावण दीपी । धूमरी आपदवेल मरदनकी (पू०)॥३॥ सकल कुशल रंग मिल्योरी सुमति संग । जागी सुदिशा सुन्न मेरे दिनकी । कहै साधु कीरति सारंग नरकरतां । आसफली मेरे मनकी (पू०) ॥ ४॥ ॥ इति प्रथम न्हवणपूजा ॥ १॥ ॥ पंचामृतमुं न्हवणकीजे (तथा.) मावै पांवकै अंगूठे जलधार दीजै ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ द्वितीय विलेपन पूजा ॥॥ ॥ ॥ सुंदर अङ्ग लूहणे करी। बिंब प्रमार्जी । केसर चंदन मृगमद अगरादिकसें । कचोली जरी। लेकर खमारहे । मुखे० ॥ (रागरामगिरी) गात्र लूहै जिन मन रगङ्गसूंरे। (देवा) सखरमुधूपित वाससुं॥ वासमुं(हारे देवा) वा० । गंध कसायसुमेलियै॥ १॥ नन्दन चंदन चंदमेलियै रे (देवा) ॥ नं०॥ मांहे मृगमद कुंकुम नेलीय ॥ करलीय (हारे देवा) क० । रय णा पिंगाणि कचोलीयै ॥ २॥ पग जानु कर खंधै सिरै रे ( देवा) जाल कंठ नर नदर न्तरै । उखहरै ( हारे देवा ) सुखकरै । तिलक नवअंग की जीयै ॥ ३॥ दूजीपूजा अनुसरै ॥ श्रावक दू० ॥ हरि विरचै जिम सुरगिरे। तिमकरै ( हारे देवा ) ति। जिणपर जनमन रंजीयै ॥ गा. ४ ॥ राग ललितमें । दूहा ॥ * ॥ करहु विलेपन सुखसदन । श्री जिनचन्द शरीर। तिलक नवे अंङ्गपूजतां । लहै नवोदधि तीर ॥१॥ मिटै ताप तसु देहको। परम शसिरता संग । चित्तखेद सब नपसमें । सुखमें समर सीरंग ॥२॥
॥॥अथ बिधि (राग ललित)॥॥
॥ विलेपन कीजै जिनवर अंगे। जिनवर अंग मुगंधै ॥ वि०॥ कुं कुम चन्दन मृगमद यवकर्दम । अगर मिश्रित मनरंग॥ वि०॥ क्रम जा नु कर खंधै शिर नाल कंठ । नर नदरन्तर संगै। विलुपति अघमेरो करत विलेपन । तपत बुमति जिम अंग ॥ वि० २॥ नव अंग नव २ तिलक करतही । मिलत नवेनिध चंगा । कहै साधु तन सुचि करसु ललित पूजा। जैसें गंग तरंग ॥ वि० ३॥ ॥ इति द्वितीय विलेपन पूजा॥२॥॥ एकही विलेपन कीजै । नव अंग पूजीये ॥३॥