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माघमाश पर्वाधिकार. ॥ॐ॥अथ माघ माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ * ॥
॥ॐ ॥ माघ महिनेमें, मिती माघ वदि १३ (सो) मेरु तेरस नाम से पर्व प्रसिघ है । (इस दिन) श्रीषन देव स्वामीको निर्वाण कल्या णक है। (इसीसें ) जगवंत महाराज इसदिनकों नत्तम कहा है । (इस दिन) चौविहार नपवास करै । रत्नामई, पांचमेरू नगवानके आगे चढा वै। बीचमें १ बमो मेरू । च्यारं दिश गोटामेरू । (ऐसें ) पांच मेरू चढावै । ऐसी शक्ती न होय (तो) सोनेके । चांदीके (वा) घृतके । मेरू करके च ढावै । आगै चारुं दिश तरफ चार चार नंद्यावत करै । अष्टप्रकारी सत्तर दी । पूजा पढायके । अष्ट द्रव्यसें पूजाकरै ॥ * ॥ पीछे ॥१॥ श्रीषनदेव स्वामी पारंगताय नमः)॥इसी पदको दो हजार गुणनो करै। और जो कोई तेरसके दिन पोशह करै (तो) पूजादिक सब बिधि पार dके दिन करै । अतिथि संविनाग करके पारणो करै । इसी विध संयुक्त १३ तेरै बरश (अथवा) १३ तेरै माश तपस्या करै । पीने शक्ति माफ क बहुत नववसें नद्यापन करै । तीर्थोकी यात्रा करै । साहमी बबल (करै ॥ इहां दृष्टांत कहतेहें। (जैसें) अयोध्या नगरीमें । अनन्तवीर्य रा जाको पुत्र । पिंगल राय कुमर । गांगिल मुनीके पास । इस पर्वका अ धिकार सुनके । तपस्या करी । तपस्याके करनेसे । सबै रोग दूर हुये। तपस्या पूर्ण होनेसें । तेरै १३ मंदर बनवाया । १३ तेरै रत्नां मई । सुवर्ण मई । रूपै मई । प्रतिमा स्थापन करी ॥१३ बेर, संघ सहत तीर्थों की या त्रा करी । तेरै बेर साहमी बबल किया । बहुत प्रकारमें ज्ञान नक्ति करी । अंतमें महसेन कुमरको राज्य देकै । श्रीसुव्रताचार्य समीपै दिदाय हण करी । अनुक्रमें चवदै पूर्वको पढके । सर्ब कर्मकों कय करके । अ नंत सुखकों प्राप्त हुवा । इसी का बिस्तार संबन्ध । मेरु तेरशका बखाण सुणनेंसें मालुम होगा । जो भब्य जीव इस पर्वकों बिधि संयुक्त सेवन करेगा । (सो) इस नवमें परनवमें अनेक सुखकों प्राप्त होगा॥ * ॥ इति माघ माश पर्वाधिकारः॥॥ ॥ ॥ ॥॥
धिकार सुनके मारे १३ मंदर 7 ॥१३ बेर संघ प्रकारसें जान मांग