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रत्नसागर.
॥ * ॥ अथ फाल्गुन माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ फाल्गुन महिनेंमें, मिती फाल्गुन सुद १४ (सो) तीसरे चौ माशे की चौदश नामसें पर्व प्रसिद्ध है । इस दिनको (सर्व कर्तव्य ) आ षाढ चौमाशे तुल्य करे। सो पूर्वे लिख्यो है ॥ ॐ ॥
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॥ # ॥ इहां विशेष होलीको अधिकार लिखते हैं ॥ ॥ ॐ ॥ श्रमण भगवंत श्रीमहाबीर स्वामी । बारे माशमें ६ मोटका पर्व कहा । ३ तीन चौमाशा । २ दो नली । १ पर्यूषणा । एवं ६ | ( जिसमें ) २ नी । १ पर्यूषणा । यह ३ पर्वका अढाई महोचवतो सर्व ठिकाणें न व्य जीव करतेहैं । और कार्त्तिक चौमाशैका नव प्रायें बहुत ठिकाणे होता है । (परंतु ) कलकत्ते जैसा महोचव कोई ठिकाऐं देखा नहीं। (और) फा ल्गुन चौमाशैका नव मुर्शिदाबाद में श्रद्धा होता है । पर कोई महोइव में आज्ञा बिरुध जो काम होय (सो) प्रशंसनीक नहीं । एकतो जगवंत के समोसरणके साथ । आज कालके । अमीर लोक । धूपकै करसें, खेह के करसें । आपतो जाते नहीं ( निकवेज ) समऊ पुरुषाकों नेज देतेहें । पीछे बे पुरुष मदोन्मत्त हुए थके । कूदतां नाचतां, जागतां । सम सरको बाला देते लेजाते हैं । (उसमें ) जितनी आशातना होती है । जितना कर्मबंधता है । उसका जागी हम नहीं || जगवंत को धर्म, विनय मूल १ । दया मूल २ । चारित्र मूल ३ है । ( इसमें ) धन्य है जिसके माता, पिता, (सो) बिनय बिबेक संयुक्त शुभावसें । सर्व धर्मकार्य करके धर्मat gain करे । नसी पुरुषांकों नमस्कार है । उसी महोछवकी प्रशंसना है । ( इससें ) आत्मार्थी धर्मज्ञ पुरुष है ( सोतो ) शेशका चौमाशा पर्व जानके । सर्व ठिकाणें । जगवंत कै धर्मको नद्योत करते थके । शुभ ध्यानरूप अनीसें ( अष्टकर्म ) रूपी काष्टकों जलाके होली करते हैं । ( पीछें) सुबोध जलसें स्नान करके अत्यन्त सुन्दरता को प्राप्त होते हैं ।। अब द्रव्यै, जावै, दो प्रकारसें, होलीका अधिकार कहरों की इच्छायें ( प्रथम ) द्रव्य होलीका अधिकार लिखते हैं ॥ इस फाल्गुण माशमें, चौदश पूर्णमाशी के दिन ( कई ) अज्ञानी जीव,
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॥ ॐ ॥