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सदैव जिनपूजन विधि. मेसदा ॥१॥ इति पुष्पपूजा ॥ फेर अस्त ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥
अर्हतं । प्रीणनं निर्मलं थल्पं । मांगल्यं सर्वसिच्छिदं । जीवनं कार्यसंसि यो । नूयान्मेजिनमंदिरं ॥१॥इस मंत्रसें मंत्रित अक्तका तीनपुंज करे। फेर पूंगीफल जातीफलादिवस्तु ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ 3 अर्हतं । जन्मफलं स्वर्गफलं । पुन्यमोदफलं फलं । दद्याजिनार्चने त्रैव । जिनपादान संस्थितः॥ इति जिन पादाग्रे फलपूजा ॥ (फेर) धूप ग्रहण करके यह मंत्र पढे॥न अर्हतं । श्रीखंमागरु कस्तूरी । द्रुमनिर्यास संभवः । प्रीणनः सर्व दे वानां । धूपोस्तु जिनपूजने ॥१॥ इस मंत्रसें धूप केपन करे । फेर पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥अर्हतं । पंचज्ञान महाज्योति । र्मयायध्वांत घातने। द्योतनाय प्रतिमायाः । दीपो नूयात्सदार्हते ॥ १॥ इति दीपमध्ये पुष्पन्यासः ॥ फेर पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न अर्ह नगवद्भयो अर्ह
यो जल गंध पुष्पाक्त फल धूपदीपैः संप्रदानमस्तु । न पुण्याहं २ । प्रीयं तां २ । जगवंतोहत स्त्रिलोक्यस्थिताः। नामाकृतिः द्रव्यनावयुताः स्वाहाः। इति पुनर्जिन पूजनं ॥ पीछे वास चूर्ण ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न सूर्य सोमांगारक बुध गुरु शुक्र शनैश्वर राहु केतु मुख्याग्रहाः इह जिन पादा ग्रे समायांतु पूजां प्रतीबंतु । ऐसा कहके नवग्रहोंकी वासचूर्णसें पूजा करे ॥ फेर यह मंत्र पढे ॥ आचमनमस्तु गंधमस्तु पुष्पमस्तु अहतमस्तु फलमस्तु धूपोस्तु दीपोस्तु ॥ पीछे अनुक्रमसें जल, गंध, पुष्प, अदत, फल धूप, दीप, नेवेद्य करके नवग्रहोंकी पूजा करे। फेर हाथमें पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न सूर्य सोमांगारक शुक्र बुध गुरु शनैश्वर राहु केतु प्रमुखाग्र हाः सुपूजिताः संतु। सानुग्रहाः संतु। तुष्टिदाः संतु । पुष्टिदाः संतु। मांग ख्यदाः संतुः । महोत्सवदाः संतु ॥ ऐसा कहके ग्रहोकू पुष्प चढावै ॥ इसी रीतीसें ॥ इंद्राग्नि यम नैशति वरुण वायु कुबेर ईशान नाग ब्रह्मणो लोकपालाः सविनायकः सक्षेत्रपालाः इह जिन पादाने समागढंतु ॥ इस मंत्रसें पूजापट्ट ऊपर लोकपालांकी वास चूर्णसें पूजा करे । फेर यह मंत्र पढे । आचमनमस्तु । पुष्पमस्तु । अदतमस्तु । फलमस्तु । धूपोस्तु । दीपोस्तु । फेर। अनुक्रमसें जल, गंध, पुष्प, अदत, फल, धूप, दीप, नेवेद्य करकै लोकपालोंकी