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कार्तिक माश, दीपमाला, ग्यानपंचमी, पर्वाधिकार ३५७ ( ज० ) ॥ ८ ॥ केवल पाय सबीसुर संगै। पावा पुर आवै । गुणगण लंकृत देशना देकें । संघ सहु पावै ॥ ९ ॥ नूमंमल बिच बहुतजीवकुं अविचल सुख देवै । नर सुर इंद्र सबीमिल पूजै। जगमें जश लेवै (ज०) ॥ १०॥ चरम चौमाशि पावापुरि करकै । अंत समय जाणी । हस्तिपा लकी शुक्ल शालमें। सोलै पहर बाणी ( ज° ) ॥११॥ पर्यकासन 36 तपस्या । इक चित गुणधामी । कार्तिक कृष्ण अमावसके दिन । शिवक मला पामी ( ज० ) ॥ १२ ॥ इंद्रादिक निर्वाण महोब्व । करि प्रनु गु ण गावै । देवमुखै गणधर गुरु गोतम । सुणनें पढतावै ( ज० )॥१३॥ बीतराग गुण मनमें धारी । अनित्यनाव नावै । केवल ग्यान प्रगट हुय ततखिण । सुर नर गुण गावे (ज.)॥ १४॥ पंच कल्याणक शाशन पतिकी । आरति ज्यो गावै । शिवमुख लक्ष्मी प्रधान मिले जब । मोहन गुण पावै (ज०)॥१५॥ इति पंच कल्याणक आरती संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ * ॥अथ श्री दीपमाला चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ ॥ जय जय श्री जिन वर्धमान । सोवन समवान । सिंह लंबन सिधार्थराय । त्रिशला सुत नांन ॥ १ ॥ वरस बहुत्तर आऊदेह । करसत्त प्रमाण ॥ षनादिक सम जासवंस । इक्ष्वाग सम जाण ॥२॥ बहनत्त संजम लियोए। कुंमग्राम पुर गम । गणधर इग्यारे सहित । आपो शिव पुर स्वाम ॥३॥ चवद सहस मुनि स्वामि सीस । बत्तीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख । गुणस सहस ॥४॥ तीन लाख श्राविका । वली सहस अढार। सुर मातंग सिचाइका । नित सानिधकार ॥ ५॥ एकाकी पावा पुरीए । बहनत सुजाण । प्रनु पोहता अमृत पदे । करो संघ कल्याण ॥६॥ इति ॥
॥ ॥ पीने जंकिंचिनामतित्थं । नमोत्थुणं० । कही। दीपमाला निर्वा णक कल्याणकको स्तवन बोले ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ निर्वाण कल्याणक स्तवन लि० ॥ ॥
॥ॐ॥ मारग देशक मोह नोरे। केवल ग्यान निधान । जावदया सागर प्रनूरे । पर नपगारी प्रधानोरे ॥ १॥ ( वीर प्रनु सिध थया) संघ स कल आधारोरे। हिव इण जरतमां । कुण करस्यै नपगारोरे॥२॥ (बीर