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रत्नसागर.
भाई नंद वर्धन राजाको घरमें बुलायके जिमाया। शोक दूर करायो । (जिस सें) नाई बीज प्रवर्तन हुई। (इसीसें) यह दीवाली पर्व बका उत्तम है। इस दीवाली रात (जो ) गुणनो करे ( सो लिखते हैं ) ॥ १ ॥ श्री महावीर स्वामी सर्व ज्ञाय नमः ॥
१२ ॥ श्री महावीर स्वामी पारंगताय नमः ॥ ३ ॥ श्री गौतम स्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥
॥ * ॥ इस एक २ पदको २००० गुणनो करै । उपवास करे । रा श्री जागण करे । निर्वाणके समय अष्ट द्रव्य थालनरके मंदर जावै । रोशनी करे। निर्वाण कल्याणककी आरती करे। दीपमाला चैत्यवंदन करके स्तवन बोले । निर्वाण कल्याणक अधिकार सुणें । गौतम रास सुणें । (इत्या दिक) नदार चित्त, सर्व ठिकाणें दीवाली पर्वका नव करना चाहिये ॥ ॥ ॥ अथ निर्वाण आरती लि० ॥
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॥ ॐ ॥ जय जगदीशर प्रति अलवेशर । बीर प्रजुराया ॥ पतित नधारण जव जयनंजण । बोधबीज दाया ॥ ( जय २ जिनराया । प्रारति करुं मन जाया । होय कंचन काया ) ॥ १ ( ज० ) ॥ त्रीकुंम नगर अति सुंदर । सिधारथ राया । सुदि आसाढ बठके दिवशै । त्रिशला कुकुमाया (ज०) ॥ १ ॥ चवद सुपन देखी प्रति उत्तम । निज प्रीतम भाषे । रथ नेद सहु निचे करनें । जिन गुण रस चाखे ( ज० ) ॥ २ ॥ चैत्र सुदी तेरश दिन उत्तम । सहु ग्रह उच्चपावै । जन्म लेई दिश कुमरी सहुना । आशन कंपावै ( ज०) ३ ॥ नव कर जावै निज थानक । इंद्र सहु वै । मेरु शिखरपर स्नात्र महोचव । करि आनंद पावे ( ज० ) ॥ ४ ॥ वसु धारा दृष्टीकर सहु सुर । निज थानक जावै । सिधारथ करें जन्म महो व । अचरज सहु पावै ( ज० ) ॥ ५ ॥ कंचन बरण तेज प्रति दीपत | हरिलंबन बाजै । कुल इख्वागु अंग सहू लक्षण । शशिज्युं मुख राजै ( ज० ) ॥ ६ ॥ दान संबर दे प्रभु लेवै । चारित्र सुख दाई । मार्ग सीख दशमी बद पa । उत्तम तरु पाई ( ज० ) ॥ ७ ॥ बार बरश बद्मस्थ प णामें । डुक्कर तप पालै । माधव सुद दशमी के दिन कुं । दोख सहु टा