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कार्तिक माश दीपमाला पर्वाधिकारः -- ३५५ नदीकी बालूके जितने कण होय (तिसमें पिण) एक सूत्रके अनंते बिष य हे । इस कल्पसूत्रके महात्म (जो) देवाचार्य । हजार जीन करके क है ( तो पिण) महात्मका एक अंश कह सकता नहीं । असा इस पर्व का महात्म जानके (जो) नव्यजीव शुद्ध नावसे सेवन करेंगे (सो) अनेक तरैसें, घी, वृधी, मुख, सौनाग्यकों, प्राप्त होंगे (और) परनवमें देवादिक रुसी पायके मुक्तिसुखकों प्राप्त होंगे ॥ इति पयूषण पर्वाधिकारः ॥ ६ ॥ ॥ ॥ अथ आश्विनमाश मध्ये पवाधिकार लि०॥
॥॥आशोज महिने में। मिती आशोज सुद ७ से लेके । आशो ज सुद १५ तांई। नवपद नेनी ( तथा ) अष्टा पद नेनी बिधि संयुक्त करै। सो सर्व बिधि पूर्वे लिखी है । नसी माफक करै ॥ ॥ इति॥ ॥ ॥ ॥ अथ कार्तिक माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥
॥ ॥ कार्तिक महिने में । मिती कार्तिकवद अमावस है (सो) दीप मालिका नामसें पर्व प्रशिच है। (यह) दीपमालिका पर्व कबसें प्रशिच हुआ ( सो लिखते है ) चोबीशमा तीर्थकर । श्रीमहावीर स्वामी। समस्त साधु, साध्वी, साथ विचरते थके । अंतकी चोमाशी पावापुरी आयके रहे (नहां ) आगामी कालके सर्व नाव । नव्यजीवोंके आगे प्ररूपण किये। फेर । आपणा अंतसमय जानके । हस्तिपाल राजाके शुक्लशालामें प्रायके रहे । ( अपनें पर ) गौतम स्वामीका बहुत स्नेह देखके । निजीक गाम में, एक देव शर्मा ब्राह्मणकों। प्रतिबोध देने के लिये भेजा । (पिगडी) प झाशन धारन करके । सोलै पहर अखंम देशना देते हुये । पूरण बहुत्तर बरशको श्राऊखो पालके ( इसी ) अमावसके दिन । पिउली दो घमी रात्र रहनेंसें सिधि स्थानककों प्राप्त नए । जिस समय नगवंतका निर्वाण क ल्याणक हुआ ( नस समय ) चौसठ इंद्र देवता गणके आने जानेसें बमा नद्योत हुआ। और (जो) सर्व राजा, पोषधमें बैठे हुए थे ( सो) नाव न द्योतका अस्तपणा देखके । सर्व ठिकाणे रत्न धरके द्रव्य नद्योत किया । एकमके: प्रातसमें देवतावोंके आते जाते बचन सुणके । श्रीगौतम स्वामी कों केवल ज्ञान नत्पन्न हुवो । ( दूजके दिन ) सुदर्शना वैन । अपना