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रत्नसागर. अनेक प्रकारके बाजिव बाजते हुये । दानें देते हुये, नाना प्रकारके श्रुत झानके गुण वर्णन करते हुये । नगरमें प्रदक्षिणा तुल्य फिरके । गुरूके पास आवै । गुरू पिण खमा होके । विनय संयुक्त पुस्तककों नमस्कार करके आ गै रखै । श्री संघके आझासे वाचना पूर्वक वाचै ॥ १ ॥ नगरमें सब ठिका णें अमारि पम्हो फेरावै । दूशरो अपने बचनसें ( तथा ) द्रब्यसें । कसाई धोबी। जमनुंजा ( इत्यादिक ) सर्वके आरंन गेमावै ॥ २ ॥ सुपात्र दा न देवै ॥३॥ विदाम, सुपारी, नालेरादिककी, परनावना करै ॥ ४॥श्रीबी तराग देवकी नदार नक्तिसें पूजा करै । चौदस के दिन । संबबरीके दिन चतुर्विध श्रीसंघ इकठे होके । सर्व मंदर दरशन करने को जावै ॥५॥ सचित्तका परिहार करै ॥ ६॥ ब्रह्मचर्य पालै ॥ ७॥ चनत्थ। 16॥ अह मादिक । तप करे ॥ ८ ॥ अपने २ वित्तके अनुसार, जन्म कल्याणक को महोबव करै ॥ ९॥ अठ पहरी पोशो करै ॥ १० ॥ संबन्चरी प्रतिक्रम ण करै ॥ ११ ॥ निशल्प होके सर्व श्रीसंघसें खमावै ॥ १२ ॥ पारणेंके दिन पोशह पमिक्कमणे वाले साधर्मी जाइयोंकी भक्ति करै ॥ १३ ॥ गुरू अक्ति करै ॥१४॥ संबचरी दान देवे । साहमी बचल करै ॥१५॥ इस विधि संयुक्त ( यह ) कल्पसुत्र एकचित्त सुणनेंसें, आराधन करनेसें, आठ अवमें सिधि स्थानककों प्राप्त होय । (और) केई नत्तम जीव । अत्यंत शुन्न नाव रखके । अमादिक तप करिके युक्त, कल्प मुत्रजीकों बाचते है।
और सुणने वाले, प्रमाद, निद्रा, बिकथा गेमके । अध्मादिक तप करके युक्त । इकचित्तसें शुच नाव रखके । इकबीश वेर सुणते है (सो) पुरष दे वगतिको प्राप्त होके । तीशरै नव सिद्धि स्थानकों प्राप्त होते है ॥ * ॥ इस पयूषणा पर्वके महोसव (जो) नव्यजीव करते है । (सो) धन्य है । धर्मके प्रनावीक है । अपणे लक्ष्मीसें धर्मका द्योत कर है । नसी पुरषां कों नमस्कार है ॥ 8 ॥ (अब कल्प सुत्रजीका महात्म कहते है ) ॥ ॥ यह कटपसुत्र, नवमा पूर्वसें नघरण किया हुवा । दशाश्रुत स्कंधका आठमा अध्ययन है । सर्व श्रीसंघके मंगलके कारण । श्रुतकेवली । श्रीनद्रबाहु स्वामी प्रसिद्ध किया है । यह कटपमुत्रके अनंते विषय है। ( जैसें ) सर्व