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जाद्रव माश पयूषण पर्वाधिकारः ३५३ माहे संतोष नियम (६ )। तपमांहें नपशम तप (७) दर्शनमाहे जैन दर्शन (८)। जलमांहें गंगाजल (९)। अलंकारमाहें चूमामणि (१०) ज्योतिषी मांहें चंद्रमा ( ११ )। तेजवंत मांहें सूर्य (१२) । तुरंग मांहे पंच वक्षन किशोर (१३) नृत्यकलावंत मांहें मोर (१४) गज मांहें अरावण (१५) दैत्यमांहें रावण ( १६)। वनमांहें नन्दनवन (१७)। काष्ट मां चंदन (१८) साहसीक मांहें विक्रमादित्य (१९) । न्यायवंत मांहें श्रीराम ( २० ) रूपवंत मांहें काम ( २१) । सती मांहें शीता ( २२ )। सुगंध मांहें कस्तूरी (२३) वस्तु माहें तेजनतूरी ( २४ )। वाजिनमाहें जंना ( २५) स्वीमाहें रंना ( २६ ) धातुमांहें स्वर्ण ( २७ ) दातारमाहें कर्ण ( २८)। गौ माहें कामधेनु ( २९)। वृद्ध माहें कल्पवृक्ष (३०)। जलमाहें अमृत (३१) स्नेहमाहें घृत (३२)। (इत्यादिक ) सर्व वस्तू में एक एक चीज नत्तम होती है । (इसी माफक) सर्व पर्वोमे उत्कृष्ट रा जाधिराज, श्री संबबरी पर्व (दूशरो नाम) श्रीपhषणा पर्बकों । नगवंत श्री महाबीर स्वामीजीने नत्तम वर्णन कियो॥ ॥ (अब श्री पयूषण पर्व आनेसें) (प्रथम) श्रीसाधुके करने योग्य धर्मकृत्य कहते है ॥ ॥ संबबरी प्रतिक्रमण करै॥१॥ लोचकरावै २ तेलैका तप करै ३॥ सर्ब मंदरोमें जगवंतकी नाव स्तवना करे ४ । सर्व श्रीसंघसें खमावै ५। यह पंचकारणके वास्ते,श्रीतीर्थकर गणधरोनें श्रीपयूषणा पर्ब प्रवर्तन किया।
॥ ॥ अबशुधश्रावक संबरी पर्व आराधन करनेकों, आठदिन अ हाही महोछव करै (सो) कल्पलता शास्त्रसें लिखतेहे ॥ ॥ प्रथम श्रुतज्ञानकी भक्ति करै । कल्पसुत्रजीकों बिधि संयुक्त अपने घर लेजा वै। रात्री जागरण करावै । (प्रनात समय ) नगरके सर्व श्रीसंघकों निमंत्र रण करै । यथायोग्य सत्कार सन्मान करै । पीने पुस्तक ग्राहक पुरुष सर्बसें नत्तम वस्त्र आनूषण पहरकै । मुगट, उत्र, चामर, (इत्यादिक सहत) सा ख्यात इंद्र महाराजको रूप बनाके हाथी ऊपर (अथवा) पालखी क पर वेठे । अष्टमंगलीक रचित थालमें पुस्तक धरके । अपने दोनुं हाथमें थाल रक्खे। दोनुं तरफ पुरष अहा बस्त्र आनुषण पहरकै । चमर ढाले ।