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रतसागर.
१०। पूनमसें सरू करे। पारणे साधू पमिलानै । ग्यान पूजा करें ॥ * ॥ इति दालिद्र हरण तपः ॥ २८ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ एकेंद्रिय नपवास १ । बेंद्रीयें बह १ । तेंद्रीय अध्म १। चौरिंद्री ये दशम १। पंचेंद्रीय प्रादशम १। उकायें चतुर्दशम १। तप करै । ऊज मणे, सुंखमीसें, स्त्री ६ जीमावे ॥ * ॥ इति उक्काय आलोयण तपः॥२९॥ ॥ ॥ नीवी (आठ) निरंतर करै । इति सासू सुखतपः॥३०॥ ॥ ॥ ॥ आंबिल (आठ) निरंतर करै ॥इति सुसरसुख तपः ॥३१॥ ॥ ॥ ॥ 16 (पांच) करै ॥ इति पुत्री सुख तपः॥३२॥ ॥ॐ॥ ॥ * ॥ अष्ठम (पांच ) करै इति बेटा सुख तपः॥ ३३॥ ॥॥ ॥ ॥ नपवास (आठ) एकांतरकरै ॥ इति नार सुख तपः॥३४॥४॥ ॥ ॥ निवी (पांच) निरंतर करै ॥ इति जेठ मुख तपः ॥ ३५ ॥ ॥ ॥ ॥ एकाशणा (पांच ) निरंतर करै ।। इतिदेवर सुखतपः॥३६॥ॐ॥ 38 ५। एकाशणा पांच । एकांतर करै ॥ इति पिता माता मुख तपः ॥३७॥
॥ ॥ इत्यादिक कई तरैकी तपस्या बहुत ठिकाणेकी श्राविका करें है । ( इसीसें ) सर्व श्राविकाके नपगारार्थ शास्त्रोंसें नघरण करके । संखे प विधिसें इहां लिखी है । वेसी शक्ति होय (तो) पूजा । साहमी बबन तीर्थ यात्रा । (इत्यादिक ) सातुं शुनखेत्रोंमें । अपणा धन खरच करै । धर्मका नद्योत करै । इस तपस्या के प्रनावसें। (इस नवमें ) संसार सं बंधी पुखदालिद्र दूर होके । सर्व कुटंबमें मुख संपदा होय । ( परनवमें) देवादिक रुधी प्राप्त होय । (किंबहुना) इति बुटकर तपस्या विधिः॥ ॥
॥ * ॥अथ नाद्रवमाशमध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ॐ॥
॥ ॥ नाद्रवमहिनेंमें । मिती नाद्रवासुद ४ (तथा) कई मतके अ पदायें ५ तिथकों । संबवरी नामसें पर्बप्रशिच है। (प्रथम इस संबनरी पर्वकी महमा कहते है ) (जैसें) जगत्रमें अनेक मंत्र है । पर नवकार मंत्र समान को मंत्र नही (१ ) तीर्थो में शत्रुजय समान कोईतीर्थ नही (२) पांच दानमें । अन्नयदान । सुपात्रदान । समान कोई दान नही (३) गुणमांहें विनयगुण (४)। ब्रतमांहें ब्रह्मबत (५)। नियम