________________
५८
... रत्नसागर. प्रनु सिघ थया)। नाथ बिहूणी सैन्य जूरे । बीर बिहूणोरे संघ । साथै कुण आधार थीरे। परमानंद अनंगोरे॥ ३॥ (बीर० ) मात बिहूणा बालज्युरे । अरहो परो अथमाय । बीर विहूणा जीवमारे । आकुल व्याकुल थायै रे॥४॥ (बी०)॥शंसय नेदक बीरनोरे । विरहते केम खमाय । जे दीठे सुख ऊपरे। ते विण किम रहिवायोरे॥५॥ (बी० ) ॥ निर्या मक नव समुद्रनोरे। नव अटवी सत्थवाह । ते परमेशर विन मिल्यारे । किम वाधे नबाहोरे ॥६॥ (बी०)॥बीर थकां पिण श्रुततणोरे । हुँतो परम आधार। हिवणा श्रुत आधाररे । एह जिन आगम सारोरे ॥७॥ (बी० )॥ इण कालै सब जीवनें रे । आगमथी आनंद । ध्यावो सेवो नवि जनारे । जिन पमिमा सुख कंदोरे ॥८॥ (बी० ) ॥ गणधर आचारज मुनीरे। सहुनें इणपरि सिघ । जव जव आगम संगथीरे । देवचंद्र पद लीधोरे॥९॥ (बी० ) ॥ इति निर्बाण कल्याणक स्तवनं ॥ ४ ॥
॥ ॥ ग्यान पंचमी पवाधिकारः२॥8॥ ॥ * ॥ दशरो कार्तिक महिनेमें, कार्तिक सुद पंचमी। (सो ) ग्या नपंचमी नामसें पार्व प्रशिध है । ( इस दिन ) सर्व नव्य जीवांकों ज्ञानको बिशेष आराधन करनो चहिये। झानके समान संसारमें उत्तम पदार्थ कोईबी नही । सर्व तत्वमें ज्ञान समान कोई तत्व नही । मोद मार्ग साधनको शान समान कोई उपाय नही । इस ज्ञान पंचमीको आराधनसें अनेक पुष्ट कर्म बिछेद होय। गुंगापणो, मूर्ख पणो, वक्रपणो, (और ) कोढादिकके रोग, सर्ब दूर होय । (अनुक्रमें ) ज्ञानावरणी कर्मके क्य होनेसें पांचों ज्ञान प्रगट होय ( जैसें ) वरदत्त गुणमंजरीके रोगादिकके सर्ब नपद्रव दूर होके । मनोरथ पूर्णलए । नसी माफक (जो ) ज्ञानपंच मीका आराधन करेगा। उसीका मनोरथ पूर्ण होगा ॥ ॥#॥
॥ ॥ ग्यान पंचमी देव बंदन विधिः॥॥ ॥8॥ प्रथम पवित्र स्थानके । चौकी पट्टे ऊपर ग्यानको स्थापन करै। तिस आगे पांच साथिया करै । फल, फूल, प्रमुख चढावै । पांच वत्तीको दीपक चढावै। अगर कपूरको धूप खेवै। पूजा पढके । वास तोप, कपूर