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कार्त्तिक माश ग्यानपंचमी देववंदन बिधिः
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सें, ग्यान पूजा करै । यथा शक्ती । रोकनाणो चढावै । (तथा) पूठा, विटां गणादि चढावै । ( ज्ञानपूजा लिखते हैं ) ॥ ॥ नमंति सामंत मही नाहं । देवाय पूयं सुविहेय पुविं । नत्तीय चित्तं मणिदामएहिं । मंदार पु प्फं पसवेहि नाणं ॥ १ ॥ तहेव सड्ढा मणि मुत्तिएहिं । सुगंधपुष्फेहि वरंसि एहिं । पूयंति वदति नमंति नाणं । नाणरसजानाय जवक्खयाय ॥ २ ॥ यह पूजा पढके, ज्ञान पूजा करे। (इसी तरे) द्रव्य पूजा करके (पीछे) नावपूजा करे ( सो लिखते हैं ) । १ खमासमण देके । इरिया वही परिकमें । लो गस्स कहै । (बैठक) मुहपत्ती परिने है । अणुजापह | मेमी नग्गहं ( इत्यादिक) दो वांदणा देवै । पीछे पांच खमा समण देके । ज्ञानको नमस्कार कहै ॥ ॥
॥ * ॥ अथ ज्ञानको नमस्कार लिख्यते ॥
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॥ ॥ सकल वस्तु प्रतिनाश जानु निरमलसुख कारण | सम्यग्दर्श न पुष्टहेतु जव जलनिधि तारण । संयम तप आनंद कंद अन्ना निवारण मार विकार प्रचार ताप तापित जिन ठारण ॥ १ ॥ स्यादवाद परिणाम धर्मपरणति परिबोहण । साहु साहुणी संघ सर्व आराधन सोहण । मो ह तिमर विध्वंस सूर मिथ्यात्व पणासण । श्रातमशक्ति अनंत शुद्ध मनु ता परगास ॥ २ ॥ मति श्रुति अवधि विसुद्ध नारा मणपऊव केवल । द पचास क्षायोपशमिक एक कायिक निरमल । दोय परोक्ष प्रथम ति हां पुगपरत दीसतः । सकल प्रतक्ष प्रकाश जास ध्रुव केवल अपरमित ॥ ३ ॥ धर्म्म सकलनो मूल शुद्ध त्रिपदी जिन नाशै । बाहिर अंग प्रधान खंध गणधर सुप्रकाशै । शाखा श्रीनिर्युक्ति नाष्य परिशाखा दीपैं । चूरण टीका पत्र पुष्प संशय सब जीपै ॥ ४ ॥ पंचोंगी सार बोध को जिन पंच
अंगे । नंदी अनुयोग द्वार शाख मानो मन रंगे । वीरपरंपर जीत अनु जव नपगारी | अभ्यासो गम गम निरुपम सुखकारी ॥ ५ ॥ मोह पंकहर नीरसम सिद्धांत अबाधै । देव चंद्र आणासहित नय जंग अगाधै। ए श्रुतज्ञान सोहामणो । सकल मोक सुखकंद । जगतै सेवो नविकजन । यामो परमानंद ॥ ६ ॥ ॥ इति ज्ञानस्तुति ॥ ॥ ( इत्यादि ) नमस्कार क