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रत्नसागर..
हिके । णमोत्थुणं॰ । जावंति चेयाई ० । जावति केवि साहू० । नमोर्हसि . ( कहके ) प्रणमुं श्रीगुरुपाय ० ( इत्यादि) ज्ञानके स्तवन बोलै । जय वीयराय • कहै | वंद० । प्रनत्थू कहके । एक नवकारको कानसम्म करे । थुई कहे ॥ ॥
॥ * ॥ अथ थुई लि० ॥
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॥ ॐ ॥ देविंद वंदिय पएहि परूवियाणि । नाणाणि केवल मोहिम ई सुयाणि । पंचावि पंचम गई सिय पंचमीए । पूया तवो गुणरयाण जि यार्दितु ॥ १ ॥ * ॥ यह स्तुति कहके । ( ज्ञान आराधवा निमित्तं करे मि का सग्गं ) तस्सुत्तरी । अन्नत्थू कहके । १ लोगस्सको का सग्ग करे (पारके) बोधा गाधं० ( इत्यादि गाथा पढके ) पीछे आणि बो हियनाणं । सुयनाणं चैव नहिनाणंच । तह मणपऊव नाणं । केवलनां च पंचमयं ॥ १ ॥ यह गाथा कहके । इहामि खमा० । श्रीमति ज्ञानाय नमः॥ १ ॥ श्री श्रुतिज्ञानाय नमः ॥ २ ॥ श्रीअवधिज्ञानाय नमः ॥ ३ ॥ श्री मनः पर्यव ज्ञानाय नमः ॥ ४ ॥ समस्त लोकालोक जास्कर श्री केवल ज्ञा नाय नमः ॥ ५ ॥ ( इसी तरै ) पांच नमस्कार करै । थिरता होय तो (५१) ज्ञानके गुणांकों नमस्कार करे (सो) पूर्वे नवपदजीकै गुणनें में लिख्या है। नसी माफक करै । पीछे (की मो नाणस्स ) इस पदको २००० गु नोकरै । कम थिरता होय (तो) ५ जाप करे । ज्ञान पंचमीका व्या ख्यान सु । थिरता होय ( तो ) इग्यारै अंगकी सिझायों पढै (वा) सुर्णे (सो) इग्यारै अंगकी सिझायों लिखतेर्हे ॥ * ॥
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॥ ॥ अथ प्रथम आचारांग सिज्ञाय लि० ॥ ॥ * ॥ (ढाल हठीलानी ) पहिलो अंग सुहामणोरे । अनुपम आ चारांगरे । ( सुगुण नर ) वीर जिनं दै जाषियो रे लाल । नबवाई जास नवं गरे ( सु० ) ॥ १ ॥ बलिहारीए अंगनी रे लाल । हुँ जानं वारं वाररे ( सु० ) विनयै गोचरी प्रदरे रे लाल । जिहां साधु तणो प्राचाररे (सु० बलि०) ॥ २ ॥ सुखंध दोय जेहनारे । प्रवर अध्ययन पचवीशरे ( सु० ) नद्देशा दिक जाणियैरे लाल । पिच्याशी सुजगीसरे ( सु० ब० ) ॥ ३ ॥ हेतु जुग
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