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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
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तत्वरमण कारण करण । अशरण शरण उदार ॥ १ ॥ इगुनवीस पदमें नजन जिनवर श्रुतनी क्ति । इन पद वंदनसें लहै । अमल नाण युत मुक्ति । ॥ २ ॥ ( राग ) व्रजवासी कांन तें मोरी गागर ढोरी रे (अपर) जमायोरे चाह । जीवमानाचं जिणंद मागे ( इस चाल में ) ॥ ॥ प्रविजन श्रुत नक्ति चरणशरण नर धरीये रे । ए श्रुत भक्ति सुमंगल माल । विमल के वल कमला वरमाल ॥ नविजन• ॥ ॥ सकल द्रव्य गुणगण परयाय । प्र गट करणं श्रुत मनजाय ॥ नवि० ॥ अतुल अनंत किरण समवाय । धरण तरणिगण सम कहिवाय ॥ ज० ॥ २ ॥ एश्रुत कुमति युवतिनें संग । गणित रमणित करैजंग ॥ नवि० ॥ रथै प्राप्यो श्री जिनराज । सूत्रे गणधर मुनि सिरताज ॥ नवि० ॥ ३ ॥ ए श्रुतसागर अगम अपार । अनंत अमलगुण रयणाधार ॥ नवि० ॥ जव जय जलनिधि तरण जिहाज । निसु णि मगननई सकल समाज ॥ ० ॥ ४ ॥ नवकोटी लगि तपकरि जीव । अग्यानीक जितनी सदीव || नवि० ॥ करम निरजरा तितनी होय । ज्ञा नीकै इकखिणमें जोय ॥ जवि० ॥ ५ ॥ एक सहस कोमि १००००००००००, बस्सय कोमि ६००००००० । चतुरतीस कोम ३४०००००००, अक्षर जोकि ॥ नवि० ॥ अमसठ लाखरु ६८००००० सात हजार ७००० । असय ८०० असीय ८० प्रमिति चितधार ॥ ( १६०३४६८७ ८८० ) नवि० ॥ ६ ॥ इतने वरणसें इकपद होय । एक श्लोकका गणितए जोय ॥ वि० ॥ इकपदको परिमाण एजाण । इणपद आगम परिमाण || नवि० ॥ ७ ॥ तीन कोमि ३००००००० अरु अडसठ लाख ६८००००० सहस वयालीस ४२००० एपदमाख ॥ ० ॥ इतने पदसैं अंग इग्या र। केरी गणना नवि चितधार ॥ ज० ॥ ८ ॥ बारम दृष्टिवादको मान । असंख्यात पदको पहिचान ॥ ज० ॥ इणको चन्दपुरब इकदेश। इसको पारलो है गणेश ॥ ० ॥९॥ एह दुवालस अंग नदार। एहनी जईये नित बीहार ॥ ज० ॥ एहनी द्रव्य नाव बहुभक्ति । करीयै धरीयै जिनपढ़ युक्ति ॥ जवि० ॥ १० ॥ रत्तचूम नृप सुखमाधार । जिन श्रुतजति करी हितकार ॥ ज० ॥ जये जिनहरष परमपददाय । जिनके सुर नर पति गुनगाय ॥ नगा