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रत्नसागर.
पुलाई ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ३ ॥ घस केशर नरकै कचोली । मां है मृगमद कुंकुम घोली । गुरु पूज रचो नरकोली (जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ४ ॥ श्री जिन हर्ख सूरी सर राजा । वाज़ै जग जशना वाजा । सत्य रत्न करै सुन काजा ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ५ ॥ इति स्तवनम् ॥ ॥ ॥ (राग केरवो ) ॥
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॥ ॐ ॥ कुशल सुरिंद गुरु पूजो नवि हितसुं (कुश० ) केशर चंदन कपूर अरगजा । नाव घरी करो पूजा चितसुं ॥ ( कु० ) ॥ १ ॥ मोगरा लाल गुलाब मालती । मनसुध माल करै नवि रुचिसुं ( कु० ) ॥ २॥ शरण शरण परम गुरु सेवो । धरम ध्यान धरो आतम रुचिसुं ॥ ( कु० ) ॥ सेवक जन प्रतिपाल जगत् गुरु । आसापुरै गुरु घणु दत्तसुं ॥ ( कु० ) ॥ ध्यान सुधारे ग्यानवधारे। रूप रंग देवे चित हित मतसुं ॥ ( कु० ) ॥ कुशन सुरिंद गुरु सानिध कारी । परतिख परचापूरै सतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ६ ॥ श्री जिनहख सदा सुविलासी । सत्यरतन सुख एही बतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ७ ॥ ॥ * ॥ ( राग देवश्री चलत ) ॥ ॥ * ॥ प्राज करोरे नचाह । श्री जिनकुशल सूरिंद मागे । ( प्रा० ) आयबी वेलानैं न प्राबो दाव । इ बी वेला क्यूं करो लाज ॥ (०) ॥ १ ॥ विविध प्रकार पूजो मनरंग । हिल मिल गावो साजन संग ( ० ) धूप दीप करो नैवेद्य सार । फुल वारीनो नहीं जिहां पार ॥ (० ) ॥ २ ॥ प्रत श्रीफल ढोवै जेह । पुत्र कलत्र पां संपदा तेह ॥ ( प्रा० ) ॥ ३ ॥ सुर नर नारी ऊना करै जोग। कौण करै झांरा दादाजीनी होम ॥ (० ) ॥ ४ ॥ श्रीखरतर गपति सिरदार। राजा राणा सेवै इकतार ॥ (० ) ॥ ५ ॥ महिर निजर करो श्रीगुरुराज । कुशल सुरिंद गुरु गरीब निवाज ( ० ( ॥ ६ ॥ श्री जिन हर्ख करे नहरंग । सत्य रतन मन ग्यान नम ग ॥ (० ) ॥ इति स्तवनम् ॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ ( राग वंगालो घाटो ) ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ में निरख्या गुरु महाराज । बतीयां हर्खजरी (में० ) अमल अनंत गुण आगरुरे । समता रसनो धाम | परम परम परमातमारे । वंदित