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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह
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दायक स्वाम || ( 30 में ० ) ॥ १ ॥ करुणा निध गुरु दोलतीरे । सेवक जन प्रतिपाल। नविजन नक्तै जावसुंरे । ल्यावै जर जर थाल ॥ ( ब० में ० ) || २ || केशर चंदन कुंकुमारे। नरीय कचोली हाथ । पदमण वै मलपतीरे । पूजै सहीयर साथ ॥ (० ० ) ॥ ३ ॥ कुशल सूरीसर सा हिबारे | श्रीजिनचंद सूरी पाट । बलिहारी जिन कुशलनी रे । गाजै घणुं गहि गाट ॥ ( ब० में ० ) ॥ ४ ॥ अष्टसिधि सानिध करैरे । सुखसंपूरण सार । श्री जिन हर्ख सूरी सरुरे । सत्यरतन सुखकार ( ब० में ० ) ॥ ५ ॥ * ॥ इति स्तवनम् ॥ ॥
॥ ॐ ॥
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॥ ॥ चरणकी चरणकी चरणकी । वारी जान में गुरुराय चरणकी (वा० ) श्रीजिनदत्त सूरीसर सदगुरु । सफल घमी सेवा चरणकी || (वा० ) ॥ १ ॥ प्रथममंगल गुरुरायकी सेवा | अशुभ करम सब हरणकी || ( वा० ) ॥ २ ॥ दालिद्रनंजण अरि सब गंजण । पग पग सानिध करणकी ॥ ( वा० ) || ३ || मोह नहीं परवाह अनेरी । शरनग्रही इन चरणकी ॥ ( वा० ) ॥ ४ ॥ श्री जिनहर्ख तुम चरणों को दासा । आशापूरो सुख करणी ॥ ( वा० ) ॥ ५ ॥ इति दादाजी स्तवनम् ॥ 11
राग प्रजाती ) ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ *
॥ * ॥ कुशलगुरु अब मोहि दरशण दीजै । ( ० ) ऐसी जांति करो मेरे सदगुरु । ज्युं मन मूढपती जै ( कु० ) ॥ १ ॥ जलदातार विरुद अमृत रस । श्रवण अंजलि र पीजै । सुरतरु सम दरशण विन देख्यां । कहो नय
किमरी ( कु० ) ॥ २ ॥ परमदयाल कृपाल कृपानिधि । इतनी रज सुणीजै । परम नगत जिनराज तुमारो। अपनो कर जाणीजै ( कु० ) ॥३॥ इति स्तवनम् ॥ * ॥
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॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ कुशल गुरु कुशल करो भरपूर । सेवक जन मन वंबित पूरण । समरयां होय हजूर (कु० ) ॥ १ ॥ परम दयाल प्रेम रस पूरण । अशुभ हर जये दूर | संघ नदोकर सदगुरु मेरा। वीनवै श्रीजिन चंदसूर ( कु० ) ॥२॥