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रत्नसागर. म्मिय दिवसे । कायब्बं पक्खियं तु पाएण । चानद्दसेवि कश्या । नहु तेरसि सोलसमे कहवि ॥३॥8॥ ॥ॐ॥ ॥१॥
॥ ॥ ( तथा ) श्रावक सामायक करै ( तब ) प्रथम सामायक दम ३ वेर नचरके (पी) इरियावही पमिकमें (क्युंकि) आत्मार्थी आचा र्यों के किये हुए कितनेही ग्रंथमें प्रसिघ पाठ हे ( और ) सामायका धिकारे प्रथम शरियावही पमिकमके (पीने करेमि नंते कहणा । ऐसा पाठ खु खासा कोई ठिकाणे देखने में न आताहै ॥ॐ॥ तथा श्री महाबीर स्वामी का न कल्याणक मान्य करणा चहिये (क्युंकि ) कल्पसूत्रादि अनेक ग्रंथोमें शाखहै (और ) बझे बडे, संबेगी गीतार्थ, खरतर गह, तप गहादिक के आचार्योनें ग्रंथोमें प्रगट पणे न कल्याणक वर्णन कियेहै (जो) श्चर्य कारी संबंध जाणके नहा कल्याणक नमानते हैं (ननोंकों) मिगंबरवत् मालिनाथ स्वामीकांनी स्त्री पणे मानणा न चाहिये (क्युंकि) आश्चर्यकारी संबंध समानत्व है ( दूशरो) न मानणे में अपने ही गुरुवादिककी आग्या लों पन होती है ॥ ॥ (तथा) सर्वे पोषध, अष्टमी, चतुर्दशी, कल्याणकादि पर्व तिथीकों करै (परंतु) सदैव करनेका कथन नही ॥ ॥ (तथा) कल्यसूत्र बाचनामें । नववाचनाको वंधाणनहिं । अधकीनी वाचना करे ॥ * ॥ ( तथा ) आंबिल मां है एक अन्नद्रव्य (दूशरो) नश्न जल द्रव्य, यह दोद्रव्य ग्रहण करनेका कथन है (इसमें) रसनाका लोलुपी पणासें अधिक द्रव्य ग्रहण न करणा चाहिये ॥ ॥ (तथा) तरुणी स्त्री कुं मूल नायकजीकी पूजा करनी प्रमाणीक आचार्यों ने निषेध करीहै (क्युकी) इस कालमें प्रायें स्त्रीयोंमें अविवेकत्व पणा(तथा) अकस्मात्स्त्रीधर्म प्रगटहो नादीख रहाहै॥॥(तथा)श्रावकांने पाणस्सलेवाकापाठ कहणायुक्त नहीं। यहसाधुका पाठहै।*॥(तथा)दिनप्रति एकनपवास पचक्खावै। जो अधिकतप कीश्नाहोय तो अपनें दिलमें धारना रके । परंतु पच्चरकाण नित्यसूर्योदयेक रणा चाहिये॥॥(तथा)जिसधान्यकी दोफामहोय जिसमें चिकणास न होय सो सर्व विदलकी गिण तीमें है । इस विदलधान्यकों गोरस दध्यादिकके साथ लवण नकरना चाहिये ॥8॥ (तथा) मुंवै जायैका सूतक मानणा
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