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श्री खरतरगच्छ शुसमाचारी
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चाहिये। जिसके घर में सूतक होय । उसी घरको आहार पाणी साधुवर्जन करे (( परंतु ) संपूर्ण कुलगोत्रको सूतक नगिणें ॥ ॥ ( इत्यादि) इहां नाममात्र खरतर गकी समाचारी लिखने में आई है (यद्यपि ) समाचारी ग्रंथ अनेक है ( तथापि ) श्रीसमयसुं दरजी महाराजके बनाया हुवा । समाचारी शतक ग्रंथ है (जिसमें ) पंचांगी सूत्रों का प्रलावा प्रमाणयुक्त | समाचारीका निर्णय किया है (जो) अनेकांती विशेषज्ञ होय सो आत्मार्थी गुरूसे निश्चैकरे | और जे कोई मूंगांमे कोरडू जैसा । एकांती, दृष्टिरागी, अभिमानी, अपने का पूंबा पकमके । धर्मसागर निन्नवकी तरे । खरतर गकों मतपक्ष में कहते है. (और) १२०४ शालमें हुवा लिखते है (सो) साफ अपनी अग्याता (तथा) द्वेष सूचन करते हैं । ग्रंथों में प्रत्यक्ष पणें साबित होता है ( कि ) कोटिक ग चंद्र कुल वयरी शाखा वाले श्री जिनेश्वर सूरजी महाराजे, प्रणहल पुर पट्टणमें। सं१०८०, चैत्यवासियों को शास्त्र विवादसें जीते (इसमें ) पाट एके, दुर्लन राजानें, खरतर विरुद दिया । तबसें खरतर गन प्रशिद्ध हुवा ( तथा ) यही, श्री जिनेश्वर सूरजीके दो शिष्य हुए । श्रीमालगोत्र थाप क. श्रीजिनचंद्र सूरी (तथा) नवांगीवृत्तिकारक श्री अजयदेवसूरिजी हुए (तथा) इनके शिष्य पट्टधारी जिन बहन सूरजी हुए। (तत्पट्टे ) युगप्रधान सवालाख श्रावक प्रतिबोधक, श्री जिनदत्त सूरिजी हुए। इस माफक बहुत ग्रंथोकी प्रशस्तियों में अधिकार है ॥ ॥ 11 11
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॥ * ॥ (इससेती) हो नव्यो मूलतत्व इसकालमें इतनाही है जो तत्व नसमको (तो) अपनी अपनी समाचारी करते जावो ( परंतु ) एकेक की निंदा मतकरो । एक धर्ममें द्वेष मत रक्खो मत करो । श्री नवकार जिन प्रतिमा पूजक सर्व जैनी भाई आपस में एक्यता करके धर्मवृद्धी ( तथा ) उत्कृष्ट ग्यानवृद्धी करते रहो। जिससेती अपने धर्मकी (तथा) अपनें जैनी भाइयोंकी दिन २ वृद्धी होय सदा आनंद होय ॥ ॥ ॥ * ॥ किंबहुना ॥ * ॥
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॥ स्वकुल प्रकाशन संक्षिप्त गुर्वावली ॥
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॥ ॐ ॥ शासन के नायक श्रीमहाबीर स्वामी (तत्पट्टे ) २ श्री सुधर्मा
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