SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 840
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२८... रत्नसागर. स्वामी (तत्पढे) ३ श्रीजंबू स्वामी, (तत्पहे)।४ श्रीप्रनव स्वामी । ५ श्री सज्यंनव स्वामी । ६ श्रीयशोजद्र स्वामी । ७ श्रीसंजूतिविजय स्वामी । ८मा श्रीनद्रबाहू स्वामी ।९मा श्रीथूलनद्रस्वामी ॥ (तत्पहे) १० मा। श्री आर्यमहागिरी (तत्पढे) ११ मा । लघुभ्राता, श्रीआर्य सुहस्ति सूरी हुए (सो) श्रीबीर नगवानसें, २३५ वरशे, संप्रति राजा (तथा) ऐवंती सु कमालकों प्रतिबोधके धर्मका बहुत नद्योत किया ॥१॥॥ ॥ ॥ ॥ (तत्प४)१२श्रीसुस्थित सूरी,१क्रोम सूरी मंत्रका जापकिया, इससे कोटिक गढ प्रशिच हुवा । इसी तरै पट्टानुक्रमें१६में पाटे॥श्री बज्र स्वामी दश पूर्व धर, बमे प्रनावीक, विद्यागामी हुए (इहांसें ) वज्र शाखा प्रवर्तन नई॥ (तथा १८ में पाटे) श्री जिनचंद्र सूरजी । हुए ॥ (इहांसें) चंद्र कुल प्रशिच हुवा । (इसीतरै पट परंपरायें) नगवानसे (३८ में पाटे)श्रीनद्योतन सूरजी हुए। (सो) एक निज शिष्य (अन्य ८३) साधु शिष्योंकों आचा र्य पद देके । चौराशी गठ प्रशिद्ध किये ॥ * ॥ यह ८४ गडके आचार्य बमे प्रमाणीक, अनावीक, धर्मोद्योतक हुए (श्रीग्द्योतनसूरी) पट्टे । बूजी तीर्थ प्रगट कारक, विमल मंत्री प्रतिबोधक, बमे प्रनावीक ( ३९ में पाटे ) श्रीवर्धमान सूरी हुए ॥ ॥ (४० में पाटे) श्रीजिनेश्वर सूरिः हुए ( सो ) अलहण पुर पट्टणमें । पुर्खन राजाकी सजा । चैत्यवासियों को विवाद करके जीते (इस सेती) सं ॥१०८०॥ (खरतर विरुद) पाटणके राजानेंदिया। अतिशयपणे सिघांत मार्गसें सचाहुवा(इससे)खरतरगन प्रसिध हुवा (इहांसे)कोटिक गछ । चंद्रकुल । वज्र शाखा(और)खरतर विरुदका । नवाशिष्योंकों नेद कहने लगा ॥॥ (४१ में पाटे) दिल्लीके बादशाहकों व रदेने वाले । जीवहिंसा गेमाने वाले । श्रीमाल, महतियाण गोत्र, प्रति बोधक । श्रीजिन चंद्र सूरी हुए। (तथा)इनोंके लघु भ्राता(४२ में पाटे) स्थंनणा तीर्थ, नवांगी वृत्ति, प्रगट कर्ता, श्री अजयदेव सूरी हुए, (तत्प है) दशहजार, वागडी श्रावक प्रतिबोधक (४३ में पाटे)श्री जिन वल्लन सूरी हुए ॥ ॥ ४३ ( तत्पढे ४४ में ) महापनावीक, युगप्रधान, चीतोमके मंदर स्थंनसें । विद्याम्नाय पुस्तक प्रगट कारकः । १२ वीर,
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy