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७२४ - रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. लिखा हुवा है ( इसमें) इहां न लिखा है । उसमुजब करे, करावै ॥ ॥ ॥ इति विशेष विधिः॥ ॥ ॥॥ ॥
॥अथ नगवंतके (९)अंग पूजन दूहा॥॥॥
॥ जलजरी संपुट पत्रनां । युगलक नरपूजंत । रिषन चरण अं. गूठमे। दायक नवजल अंत ॥१॥ जानुं वलें कानसग रह्या । विचरया देश विदेश । खमा खडा केवल लया। पूजो जानु नरेश ॥२॥ लोकांतिक बचनें करी । वरस्या वरशी दान । करकंमै प्रनु पूजनां। पूजो नवि बहु मांन॥३॥ मानगयुं दोअंशथी । देखी वीर्य अनन्त । नुजाबलें जवजल तरया । पूजो खंध महन्त ॥ ४॥ रत्नत्रय गुण ऊजली । सकल सुगुण विशराम । नानि कमलनी पूजना। करतां अविचल धाम ॥ ५॥ हृदय कमल नपशम बलें । बाल्यो रागर्ने रोष । हेम दहै वन खंमनें। हृदय तिल कसंतोष ॥६॥ सोल पहर देई देशना। कंठ विबर वर तूल । मधुर धु नी सुर नर सुणे। तिम गले तिलक अमूल ॥ ७ ॥ तीर्थकर पद पुन्य थी। त्रिनुवन जन सेवेत । त्रिनुवन तिलक समा प्रनु । बाल तिलक ज यवंत ॥८॥ सिद्ध शिला गुण कजली । लोकांतिक जगवंत । वसियातिण कारण सही। शिर संख्या पूजंत ॥९॥नपदेशक नव तत्वना । तिम नव अंग जिणंद । पूजो बहुविध नाव थी। कहे सहु वीर मुणिंद ॥ १० ॥
॥ ॥ अथ शिदाकारक दूहा ॥॥.. ॥ॐ॥ जीवमा जिनवर पूजिई। पूजाना फल जोय । राज नमें परजा नमें। आंण न लोपे कोय ॥ १॥ कुंने बांध्यो जल रहे । जल विना कुंन न होय । झाने बांध्यो मन रहे । गुरु विना ज्ञान न होय ॥१॥ गुरु दीपक गुरु देवता । गुरु विन घोर अंधार। जे गुरु वाणी वेगला। रम वमिया संसार ।॥१॥नावे जिनवर पूजियें। नावे दीजै दान । जा वे भावना जाविये। जावे केवल न्यान ॥१॥प्रनू नामकी नषधी । शुध चित्तसें खाय । रोग पीमा व्यापे नही । महा दोष मिट जाय ॥ १ ॥ पांच कोमीने फूलमे । पाम्या देश अढार । कुमार पाल राजा थयो । वरत्यो जैजै कार॥१॥ मनमोहन पारस मिल्यो। मोहन गुण सुखकंद । मोहनी मू