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लघु नवपद पूजा.
७२९ रत देखके । मोहन चित आनन्द ॥ १ ॥ पारश प्रनुके नामसें । सहु से कटमिटजाय । ईत उपद्रव जय टलै। मोहन गुण प्रगटाय॥१॥ इति दूहा॥8॥
॥॥अथ नवपदपूजा लि०॥ ॥
॥ ॥ प्रथम अरिहंत पदपूजा॥2॥ ॥ ॥दोहा॥ परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी नर ध्यान ॥ अरिहंत पदपूजा करो। निज निज शक्ति प्रमाण ॥8॥
॥ ॥काव्य ॥ जियंतरंगारिजणे सु नाणे। सप्पामि हेराइ सयप्पहाणे। संदेह संदोह रयं हरते । काएहनिचंपि जिणे रिहंते ॥१॥ ॥ ॥
॥ नप्पन्न सन्नाणमहोमयाणं । सप्पाडिहेरासण संठिाणं ॥ सद्देस गाणं दियसझणाणं । णमो णमो होठ सया जिणाणं ॥१॥ नमोनंत संत प्र मोद प्रधानं । प्रधानाय नव्यात्मने जास्वताय ॥थया जेहना ध्यानथी सौ ख्यनाजा। सदा सिघ चक्राय श्रीपाल राजा॥२॥ करया कर्म पुर्मर्म च कचूर जेणें । जला भव्य नवपद्द ध्यानेन तेणें ॥ करी पूजना नव्य जावें त्रिकालें । सदा वासियो आतमा तेण कालें ॥३॥ जिके तीर्थकर कर्म नदयें करीनें । दिय देशना जव्यनें हित धरीनें ॥ सदा आठ महापामिहारे समेता। सुरेश नरेशें स्तव्या ब्रह्मपूता ॥४॥ करया घातिया कर्म चारे अ लग्गा। नवोपग्रही चार ने जे विलग्गा ॥ जगत् पंचकल्याणक सौख्य "पामें। नमो तेह तीर्थकरा मोदकामें॥५॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल )॥त्रीजे नव विधिसे करी। वीश स्थानक तप करिने है। गोत्र तीर्थकर बांधियुं । समकित शुच मन धरिनेरे ॥ १ ॥अरिहंत पद नित वंदिये। करम कठिन जिम मीयेरे॥ (ए आंकणी)॥जनम कल्याण कनें दिनें । नारकी मुखिया थावरे ॥मति श्रुत अवधि विराजता । जसु नेप म कोइ नावे रे॥१०॥ २ ॥ दीक्षा लीधी शुन्न मनें । मन पर्यव प्रादरि युरे॥ तप करि कर्म खपाइनें । ततखिण केवल वरियुं रे॥ अ० ॥ ३ ॥ च तीश अतिशय शोलता। वाणी गुण पेंतीशो रे ॥ अठदश दोष रहित थई, पूरे संघजगीसो रे ॥अ० ॥ ४ ॥ तन मन वयण लगाइने । अरिहंत पद आराधे रे॥ ते नर निश्चयथी सही। अरिहंत पदवी साधे रे॥१०॥ ५ ।।