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नंदीश्वर दीपस्तवन तपस्याबिधि. पूज एह । इसी परे बीजी च्यार तेह । दशां तणी वृधि तिहां गिणीजे । एक चित्त सूधै सुन्न पुन्य कीजें ॥ ११ ॥ धजा तणो रोप तिहां करीजै । एकेक पूठे अथवा गिणीजे । सहुत्तरै आरति मंगलेवो । प प्रनु आगलि ते करेवो ॥ १२ ॥ ( कलश ) इम करिय पूजा यथायोगै संघपूजा आद रो। साहमी वडल करो नविका नव समुद्र लीलावरो । संपदा सोहग तेह मानव शचि वृधि बहुलहै । श्री अमरमाणिक सीस सुपरै साधु की रति इम कहै ॥ १३॥ इति श्रीचैत्री पूनिम स्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नंदीसर द्वीप स्तवन लि०॥ ॥ ॥ * ॥ नंदीसर बावन्न जिनाले । शाश्वता चौमुखसोहै रे । खना नन चंद्रानन वारषेण । वरधमान मन मोहेरे (नं० )॥१॥ आठमोदीप नंदीसर अदनुत । वलयाकार विराजैरे । तेहनें मध्य चिहुं दिश शोनत । अंजन गिरवरगजैरे॥२॥ (नं०) जोयण सहस चनरासी ऊंचा । ऊंच पणे अनिरामारे । मूलै पृथुल सहसदश जोयण । वरि सहस इक श्या मारे ॥३॥ (नं० ) ते ऊपर प्राशाद प्रजुना । अति नत्तंग नदारारे । सा धूजंघा विद्याचारण । वांदै विविध प्रकारारे॥ ४॥ (नं० ) चैत्ये चैत्ये एक सो चोवीस । बिंब संख्या सविदाखीरे । ध्यावो सेवो नविजन नक्ते । सुध आगम करि साखीरे॥५॥ (नं०) ऊंचपणे सहु जोयण बहुत्तर । सो जोयण आयामारे । पिहुलपणे पंचास जोयणना । प्रनु प्राशाद सुगमारे ॥६॥ (नं०) धनुष पांचसैं आयत प्रनुनी। बिविध रतनमय कायारे। जि न कल्याणक नबव करवा । सुरपति जगते आयारे॥७॥ (नं० ) अंजन अंजन चिहुं गिरी नवरे । चौमुख वावि बिशालारे। वावि वावि विच इक इक पर्वत । राजतरंग रसालारे॥८॥ (नं० ) चौसहि सहस जोयण उत्तंगै। दश सहस सम पिहुलारे। चिहुंदिशि सोल सोहै दधिमुख गिर । तिहां प्रा शाद सुविमलारे॥९॥ (नं० ) वावि वाविनें अंतर विदिशैं । रतिकर पर्व त रूमारे । दोय दोय संख्या ए जगदीस । कह्या नही एकूमारे ॥१०॥ (नं० ) जोयणसहस मान दश ऊंचा। दश दश सहस विस्तारारे। मल्लरि स म संगण जगदगुरु । निश्चय ए निरधारारे॥ ११॥ (नं०) ते ऊपर प्राशा
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