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रत्नसागर.
द सतोरण | अंजनगिरि परि माणें रे। जिन प्रतिमानी संख्या तेहिज । श्रीजि नराज वखाएँ रे ॥ १२ ॥ ( नं० ) इम प्राशाद प्रजूना बावन । नंदीसर वरप्री पैरे । द्रव्य जाव विध पूज करंता । मोह महाजड जीपैरे ॥ १३ ॥ ( नं० ) प्रवचन सार नचार प्रकरणें । जीवाभिगमैं जाणोरे । इम अधिकार नै ग्रंथ अनेकै । इहां का मत आणोरे ॥ १४ ॥ ( नं० ) जिम सुरपति विरचै ति हां पूजा । ते अनुभव इहां ल्यावोरे । ध्यावो जिम पावो परमातम | जैन चंद्र गुणगावोरे ॥ १४ ॥ ( नं ० ) इति नंदीसर द्वीप स्तवनम् ॥ 112 11 ॥ अथ नंदीश्वर तपस्याकरण विधि लि० ॥ ॥ * ॥ शुभदिन शुभ घमी गुरूके पास नंदीश्वर तप ग्रहण करे । नंदीश्वर प्रीपके चारूं दिश तरफ (५२) चैत्यकी अपेक्षायें । अमावस के मावस ( ५२ ) नृपवास करै । जिस दिन जो माहाराजके नामका उपवा स होय । उसी नामको २००० गुणनो करे ( सो लिखते है ) ॥ ॥ ॥१॥ रुषमाननजी सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ॥२॥ श्रीचंद्राननजी सर्वज्ञाय नमः ॥ * ॥ ॥ ३ ॥ श्रीवारषेणजी सर्व ० ॥ ४ ॥ ॥ श्रीवर्धमानजी सर्व० ॥ ॥
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(यह ) च्यार नामकों ( ४ ) वेर सुलटा ( ४ ) वेर नजटा गिणें । अनुक में ( १३ ) नृपवास करनें सें एक नली होय ॥ (४) वार नली करणेंसें, यह तप संपूर्ण होय । पीछे शक्ति माफक ऊजमणो करै । नंदीसर द्वीप को मंगल बणावै । पूजा करावे । (इत्यादि महामहोव करके ) । ग्यान पूजा करे । साहमी बल करे । मंगल पूजाकी बिसेष विधि गुरूके बचनसें जाणके करै । इति नंदीसर तपस्याधिकारः ॥
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॥ * ॥ वैशाखके महिने में ( मिती ) बैशाख सुद ३ है (सो) तृतीया नामसें पर्व प्रसिद्ध है ( इस दिन ) श्रीषन देव स्वामीके | चारित्र ग्रहण कियां पीछे | वारै माशीका पारणा । सोमयश राजाके पुत्र । श्रीश्रे यांस कुमरजीके हाथसें । इक्षुरस सेती हुवा (नसी समय ) नलम दानकें प्रभावसे | सर्व देवगण प्रमोदवंत होके । सुगंध जलकी वर्षा ॥ १ ॥ सुगंध पुष्पों की वर्षा ॥ २ ॥ ( १२॥ ) कोन सोनइयोंकी वर्षा ॥ ३ ॥ आकास
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थ बैशाख माशमध्ये पर्वाधिकार लि० ॥
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