________________
ज्येष्ठ, आषाढ, माश पर्वाधिकार
३४७
सें हो दानं २ ऐसें उदघोषणा ॥ ४ ॥ देव मुनि बात्रि ॥ ५ ॥ ऐसे पांच द्रव्य प्रगट किये । श्रेयांस कुमरका जश तीन नुवनमें विस्तरण हु आ । ( इसी दिन ) आहार देणेंकी विधि सबकों मालुम हुई। इस दान के प्रभावसें श्रेयांस कुमर प्रय सुखकों प्राप्त हुवा । ( इसी ) य तृतीया पर्व श्रीसंवमें परम मंगलकारी है । इस पर्व के आसें । अछे वस्त्र आभूषण पहरके । भगवंतके मंदर जावै । प्रष्ट द्रव्यसें पूजन करे । स्ना अष्ट प्रकारी। सत्तरभेदी ( इत्यादिक) पूजा करावे | पीछे गुरूके मुख सें, एकासादिक पच्चक्खाण करके । पकी महमा सुर्णे । अपने घरमें मंगलीक जोजन तैयार होनें सें । गुरूकों वहरायके । सर्व कुटुंब इकट्ठे होके जीमें। और (जो ) मंगल कार्य करणा होय (सो) इसी दिन करे । ( इस माफक ) इस पकों जो नव्यजीव सेवन करेंगे। नसीके तप तेज सदा वढते रहेंगे। अजं विस्तरेण ॥ इति श्रय तीज पर्वाधिकारः ॥ अथ तृतीय ज्येष्टमाशा पर्वाधिकारः ॥
॥
॥
॥ * ॥ ज्येष्ट कृष्ण त्रयोदशी (१३) के दिन ( शोलमा ) श्रीशांति नाथ स्वामीका निर्वाण कल्याणक है । ( इसीसें ) यह दिन बमा उत्तम है । सर्व ठिकाणें श्रीसंघ इकट्ठे होके । । विधि संयुक्त शांति पूजाका महो
करावे । शांति जल तेजाके । अपने २ घरमें छींटे । इस शांति पूजाके करानें । मारी जा । (इत्यादि समुदाइक रोग) कभी श्री संघ में व्याप्त न होय (अथवा ) कोई श्रावकके घरमें रोग चालो रहतो होय (वा) बहुत चिंता रहती होय ( तो ) इसी दिन शांति पूजाका छव कराणा चाहिये । ( इससें ) आधि व्याधि ग्रहादिककी पीमा सर्व दूर होय । अ नेक मंगल श्रेणी प्रवर्त्तन होय ॥ इति ज्येष्टबद ( १३ ) पर्वाधिकारः ॥ ॥ ॥ * ॥ आषाढ माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥
*
॥ * ॥ प्राषाढ सुद १४ के दिन । चौमाशी १४ इस नाम से पर्व प्रसिध है (सो) लिखते है | ( यथा ) सामायका वस्यकपोषधानि । देवार्चन स्नात्र विलेपनानि । ब्रह्मक्रिया दान तपो मुखानि । जब्या चतुर्मासक मंरुनानि ॥ १ ॥ ( अर्थ ) जोजव्या एतानि सामायकादि धर्म कृत्यानि । चतुर्माश