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सामायक को है । (यथा शक्ति के भगवान के हव। केइ नाना
रत्नसागर. कस्य मंडनानि अलंकार जूतानि विद्यते ॥ अहो लब्य प्राणी जीवो ( यह ) सामायक कों आदलेके (जो) धर्म कृत्यहै (सो) चोमासे के मंमनहै। अलंकार समानहै । (यथा शक्ति) यह चौमासे पर्वमें । केइ जीव । सा मायक । पमिकमणा । पोशा । करै । केइ नगवानके मंदरमें नानाप्रकार की पूजा करै । केइ शीलबत पाले । केइ सुपात्र दान देवे । केइ नाना प्र कारकी तपस्या करै जैसो धर्मकाम अपणी शक्तिसें बण आवै (सो करै ) इसमें विरोध नहीं । कोई प्रकारमें धर्मका नद्योत करणा चाहियै (जिससे ) सर्व श्रीसंघमें कल्याण माला प्रगट होय । और चौमा शी (१४) के दिन । सर्ब मंदर दरशन करनेकों जावै । पांच शक स्त व देव बांदै । पीछे गुरूके पास जाके । चौमासे पर्वका व्याख्यान सुरें। सर्ब चीजका प्रमाण करके । नपरांत सोगन लेवै । सांऊको चौमाशी प मिक्कमणो करै। ( इसी माफक ) काती चौमाशै । फागुण चौमाशकों पिण सेवन करै ॥ इति चतुर्माश पर्वाधिकारः कथितः॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ श्रावण माश मध्ये तपस्याधिकार कथ्यते॥७॥
॥* ॥श्रावण माशमें कई नब्य जीव । मम्माई आदिक खेत्रोमें। नाना प्रकारकी पूजा नाटकादिनचव, अंगी रचना करायके चौमाशै पर्व: का नद्योत करते हैं। ( इसी माफक) सर्बठिकाणे नाना प्रकारकी पूजा कराणी चहियै । और बहुत ठिकाणे की श्रावकण्यां इस महिने में कई तरकीतपस्या करै है । ( जिसमें ) नत्तम फलकी देने वाली कई तपस्या ( विधि प्रपाक ग्रंथसें ) नघरण करके । संखेपविधिसें इहां लिखतेहे ॥
॥ ॥ अथ बुटकर तपस्या विधि लि०॥ * ॥ ___॥ * ॥ पुरिमट्ठ १ । एकासण १ । नीवी १ । आंबिल १। नपवास १। (यह १ नली) इसी तरै पांच नली करै । तपो दिन २५ । ऊजमणे (२५)। लाडू चढावै ॥ ॥ इति इंद्रि जय तप॥१॥* ॥ ॥ ॥
॥ ॥ एकासण १ । नीवी १ । आंबिल १ । नपवास १ । (इसी तर) ली च्यार करै । तपो दिन १६ । ऊज मणे १६ लामू चढावै ॥ * ॥ ॥ ॥ इति कषाय जयतपः २॥ ॥ ॥ ॥