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रत्नसागर. यंच नारक तणी गतिना पुःख दूरै राखिये ॥१॥ ( चाल ) जिन राजारे पहिलो आदि जिनेसरू । तमु नंदनरे चक्रवर्ति जरतेसरू । तसु अंगजरे पुंमरीक गुण गण निलो । शम दम रसरे विनय बिवेक गुणे जलो (नल्लालो) गुणनलो अनुक्रम आदि जिनवर पास संयम सिवा री। पुमरीक गणधर प्रथम विहरै सुमति गुपतै संचरी । पण कोमि साथे विमल गिरवर मुगति पदवी पाव ए । सुदि चैत्र पूनिम तेण ए गिरी पुंमरीक कहावए ॥२॥ (चाल) हिव चैत्रीरे पूनिम पर्व सुहामणो । सेठे जैरे आराध्यां फल हुवै घणो । मन सुघरे आपणपै थानक रही । आ राध्यांरे यात्र पुन्य पामें सही (नलालो) ते पुन्य पामें दान तप जप ध ने ध्यान मने धरै । बहु नाव न त्रिविध पूजा आदि जिनवरनी करै । नावना नावै तेण दिवशै पंच कोमि गुणो फलै । अनुक्रमे ते नर मुगति पामी सिघ सुंदरने मिलें ॥३॥(चाल) दश वीशारे तीश चालीश पूजा कही। पन्नासारे श्रावक निरती सरदही। चन्थ उठेरे अहम दसम वा लसैं । पूजा फलरे अनुक्रम ए मुझ मन वसैं । ( नल्लालो ) मनवस पूज कपूर धूवै मासखमण फले वली । सामन्न धूवे पक्खनो फल जे करे मननी रली। हिव पूजनी विधि जेम गुरु मुख सुणीअडे परंपरा । ते मोहमाया कप टळमी सुणो नवीयण सादरा॥ ४ ॥ ॥ (ढाल) तंकुल राशि विमल गिर थापी । तमुऊपरि पट्टादिक आपी । प्रतिमा आदि जिणेसर केरी । पुमरी कनी थापी निवेरी ॥५॥ सेठेज गिरिने मन चिंतीजै । करमतणा मल दूर करीजै। मोती तंजुल करीय वधावो। तीन प्रदक्षिण पूजरचावो ॥६॥ मंग लीक पहिला तिहां आठ । करमबंध दूर करि आठ । प्रतिमा मूल सनात्र करेवा । जिनवरना गुणहीयडै धरेवा ॥७॥ कनाथई नवकार गुणंता । दश दश जैती तिलक करंता । माला पुष्प पुंगीफल ढोवो । मेरु नरण वर धूप नखेवो ॥ * ॥ ( ढाल ) शक स्तव पांचे देववादै । जघन्यना वंदण पाप बेदै । दशे नमस्कार करंत जैती । राखी करी दृष्टि जिनेंद्र सेती ॥९॥ आराधिवा कीजै कानसग्ग । जिणे कीये नाजै कर्म वग्ग । लोगस्स न झोय दसे वखाणुं । वेला प्रमाणे अहिं एगाणुं ॥ १० ॥ इणे प्रकार धुर