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रत्नसागर. तो व्रत नंग न हो ॥ १४ ॥ पमुचमुक्खिएणं ( व्या० ) सर्वथा लूखी रोटी खाखराप्रमुख द्रव्य किंचिन्मात्र घृतादिकसुं वेमालुम चोपडनें में आया होय । परंतु घृतादिक का सवाद मालुम नही पडता होय । जो (नीवी) पञ्चक्खाण मध्य ऐसा द्रव्यकुं खाणेमें आजावेतो व्रतत्नंग न होय ॥१५॥
॥इति पंचदशा गाराणां लेशतोऽर्थ संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥
॥दोचेव नमुक्कारो। आगाराउच्चहुँति पोरसिए । सत्तेवय पुरमढे। एगास णमि अहेव ॥१॥ सत्तेग हाणस्सओ। अठे वय आयंबिलंमि आगारा । पंचे वयनत्तठे। बप्पाणे चरिमचत्तारी ॥२ ॥ पंचचरो अनिग्गहे । निबीए अह नवय आगारा । अप्पावरणे पंचन । हवंति सेसेसु चत्तारी ॥३॥ __॥ ॥ इति आगार संख्यागाथा ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ मुहपत्ती पडिलेहण ॥ * ॥ ॥ सूत्र अर्थ साचो सरदहुँ १ ॥ सम्यक्तमोहनी २॥ मिथ्यात्वमोहनी ३ ॥ मिश्रमोहनी ४ ॥ परिहरूं ४ ॥ ( यहच्यार पमिलेहण मुहपत्तीखोलतीवखत कही जै) काम राग १ ॥ स्नेहराग २ ॥ दृष्टिराग ३ ॥ परिहरु ( यह सातेवोल प्रथम कही जै)। सुगुरु १॥सुदेव २॥ सुधर्म ३॥ श्रादरु ॥ कुगुरु १ ॥ कुदेव २ ॥ धम्म ३ ॥ परिहरु ॥ ज्ञान १ ॥ दर्शन २ ॥ चारित्र ३ ॥
आदरूं । ( यहनवपमिलेहणमावै हाथे करीजै )। ज्ञानविराधना १ ॥ दर्शनविराधना २ ॥ चारित्रविराधना ३ ॥ परिहरु ॥ मनोगुप्ति १ ॥ वचन गुप्ति २ ॥ कायगुप्ति ३॥ श्रादरं ॥ मनोदंग १ ॥ वचनदंम २ ॥ कायदंग ३ ॥ परिहरु ॥ ( यह नव पमिलेहण जीमणे हाथे करीजै । यह पचवीस बोल मुहपत्तीका जाणना ॥अब पचवीस पमिलेहण अंगनी कहतेहैं ॥ कृष्णलेस्या. १ ॥ नीललेस्या २ ॥