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श्रीसमेत शिखरजी की पूजा. ॥ ॐ ॥ राग धन्या सिरी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ तेज तरणि मुखराजै ॥ एचाल ॥ जिनजीको सुरपति गण गुण गाँवै ॥ सु० ॥ जे इकवीसनेद जिनपूजा ॥ करइ करावे जावे ॥ ते जन सकल पुरित रि हरकरि ॥ तीर्थकर पदपावै ॥ जि० ॥ वरसनाग कृषि वसु धरणी मित ॥ सकल संघ सुखपावे ॥ माघमास सित पंचमि दिनकर ॥ वासर सहु दिनरावै ॥ जि० २ ॥ श्री जिन चंद्र सूरि खरतरपति | पटनन तरणि कहावै ॥ श्रीजिन हर्ष सूरि सूरीश्वर ॥ विजयमान वदावे ॥ जि० ३ ॥ संघा ग्रह हुंती जय नगरे || महो वजाय पद चावै ॥ रूप चंद्र वादींद्र विरुद्ध घर ॥ जगुणिजनगु गावै ॥ जि० ४ ॥ तसु विनेय वाचकवर पदधर ॥ पुण्य शील शुभ जावै । समय सुंदर गणि तसुपद पंकज । सेवन नमर कहावै ॥ जि० ॥ ५ ॥ सु० ॥ समरण करि जिन वर गिरकोतसु ॥ चरण कमल सुपसावै ॥ पूजरची पाठक शिव चंदे || परमानंद वधावै ॥ जिन० सु० ॥ ६ ॥ इति शिवचंदजी उपध्यायकृत इकवीश प्रकारी पूजा सं० ॥
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॥ * ॥ अथ श्रीसमेतशिषरपूजा लिख्यते ॥ ॥ * ॥ चौवीसे जिनवर तथा प्रणमीनावे पाय । समेत शिखर गिरिरायनी । पूजक मनलाय ॥ १ ॥ शिखरसमेतसिरोमणी । एगिरवर कैलास । प्रतिनत्तंग मनोहरू | एजोगिंद्र विलास ॥ २ ॥ वीशप्र मुगतैं गया । कर प्रणशण इह ठगेर । तातें सुर किंनरसवे । वदत है करजोर || ३ || महिमा जाकी महियजै । कहि न सकै कवि कोय । मुक्ति महिल निश्रेणिकी । एतीरथजगहोय ॥ ४ ॥ मिथ्यामत राची रह्या ॥ तिनकुं एन सुहाय। घूकत मन किमगमें। दिनकर सब सुखदाय ॥ ५ ॥ जितजिद दिणंद सम । दूषम सुषमा काल । कुशन करन जव जय हरन । प्रगट नए प्रतिपाल ॥ ६ ॥ श्रीराग ॥ हांहोरेदेवा बावना चंदन कुमकुमा ॥ चाल ॥ हांहोरेदेवा ॥ समेत शिषरगिररायना । गुणगावो मनधर प्रेम ए| हांहोरेदेवा । सुरगुरु पिए एगिरतणी । बहु महिमा वरणै केमए ॥ १ ॥ हांहोरेदेवा ॥ वीसप्रनु मुगतैं गया | जितादिक श्रीजिनचंद ॥ हां होरेदेवा || इसकारण एगिरवरू । निश्रेयस सुरतरु कंदए ॥ २ ॥ हांहोरेदेवा | कोकाकोमी मुनिवरू । सीधावहु इगिर आयए । हांहोरेदेवा ॥ एगिर फरस्यां
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